অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

कार्बनिक प्रदूषक-कारक, प्रभाव व निवारण

परिचय

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का अग्रणीय योगदान है तथा बढ़ती हुई जनसंख्या को खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराने में इसका अहम स्थान है। एक ओर जनसंख्या में तीव्र गति से बढ़ोतरी हो रही है, तो दूसरी ओर प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण; समय के साथ बढ़ती हुई जनसंख्या को भरपेट भोजन उपलब्ध कराने में कई चुनौतियां पैदा हो गई हैं। कृषि में भूमि व जल का अहम योगदान है, लेकिन वक्त के साथ इन दोनों की गुणवत्ता में गिरावट देखी गई है। एक ओर मृदा स्वास्थ्य में ह्रास तो दूसरी ओर जल निकायों का प्रदूषित जल निकायों में तब्दील होना हमारे पर्यावरण के लिए खतरनाक है तथा मानव जीवन के पृथ्वी पर अस्तित्व पर भी एक प्रश्न चिन्ह अंकित करता है।

विगत कुछ दशकों से कार्बनिक प्रदूषकों का स्तर बढ़ गया है तथा इनकी विषाक्तता के लक्षण भी स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे हैं। कार्बनिक प्रदूषक से तात्पर्य है। वे प्रदूषक जिनकी संरचना में कार्बन तत्व होता है। अगर हम कार्बनिक प्रदूषकों से होने वाले हानिकारक प्रभाव को देखें तो ये अत्यधिक खतरनाक हैं। पर्यावरण, मृदा तथा मानव स्वास्थ्य के लिए मृदा स्वास्थ्य मानव स्वस्थ जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि दैनिक जीवन की आवश्यकताओं जैसे: खाद्य, चारा और ईंधन इत्यादि के लिए हम मृदा पर ही निर्भर करते हैं। ज्यादातर कार्बनिक प्रदूषक संश्लेषित यौगिक होते हैं। इसके अलावा प्रकृति में प्राकृतिक तरीके से भी कार्बनिक प्रदूषक होते हैं।

कार्बनिक प्रदूषण कई कारकों के द्वारा होता है, लेकिन कुछ मुख्य कारकों को यहां उल्लेख किया गया है:

कीटनाशक

फसलों व घरेलू उपयोग में हम कई तरह के कीटनाशकों का उपयोग करते हैं जैसे: फसलनाशक, खरपतवारनाशक, फफूदीनाशक, चूहे मारने की दवा, सूत्रकृमिनाशक, कीटनाशक इत्यादि। इनमें मुख्यतया ऑर्गेनोक्लोरिन, ऑर्गेनाफॉस्फेट, कार्बोनेट व संश्लेषित पायथ्रोराइड तथा कार्बनिक कीटनाशक शामिल हैं। इनके अलावा जैविक कीटनाशक भी प्रकृति में पाये जाते हैं तथा उनका उपयोग भी फसल उत्पादन बढ़ाने में किया जाता है। कीटनाशकों का मख्यतः उपयोग कृषि के क्षेत्र में ही किया जाता है। लगभग 2 मिलियन टन का सालाना कीटनाशक सम्पूर्ण विश्व में प्रयोग किया जाता है, जिसका 24 प्रतिशत यू.एस.ए., 45 प्रतिशत यूरोप तथा 25 प्रतिशत शेष, विश्व के अन्य देशों द्वारा उपयोग में लाया जाता है। इस उपयोग की दर प्रतिवर्ष बढ़ती ही जाती है। अगर हम एशियाई देशों की बात करें तो चीन, कोरिया, जापान के बाद भारत का स्थान आता है। भारत में 0.5 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से यह उपयोग होता है। भारत में कीटनाशी का अत्यधिक उपयोग तथा वैश्विक स्तर पर फसलनाशी का उपयोग होता है, क्योंकि भारत आर्द्र-गर्म जलवायु क्षेत्र में आता है। इससे कीट-पतंगों द्वारा फसल को नुकसान अधिक होता है। कई कीटनाशकों का उपयोग मलेरिया, टिड्डी रोकथाम के लिए भी किया जाता है, जबकि पर्यावरण में उनके अवशेष कई वर्षों तक उपस्थित रहते हैं और मृदा व पर्यावरण की किसान इन कीटनाशकों के नुकसान की जानकारी के अभाव में फसल उत्पादन के दौरान इनका अंधाधुंध उपयोग करते हैं। कीटनाशकों की मात्रा मृदा के द्वारा फसल में पहुंचती है। यह कार्बनिक प्रदूषक वसा में मिलकर मनुष्य जीवों के शरीर को नुकसान पहुंचाता है। कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से जैव विविधता में भी कमी देखी गई। कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग के कारण मृदा में सूक्ष्मजीवों, मृदा एंजाइम की मात्रा में भी कमी देखी गई।

अनवरत् जैविक प्रदूषक

ये विषाक्त रसायन होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य तथा पर्यावरण के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। इनमें से कुछ को तो हम भलीभांति जानते हैं, जैसे डीडीटी, डाओजीन।  जापान के इहिम विश्वविद्यालय ने अनुसंधान के बाद बताया कि POPs का मुख्य स्रोत नगरपालिका डंपिंग स्थान में पाया गया है। भारत में भी चेन्नई, दिल्ली और कोलकाता के नगरपालिका डंपिंग स्थानों पर POPs की मात्रा पाई गई है, जो कि पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। ये रसायन स्थिर प्रकृति के होते हैं तथा वसा ऊतकों द्वारा शरीर में संचयित होते रहते हैं। लंबे समय तक संचयन होने के कारण मनुष्य में गुर्दे व लीवर की बीमारियां होने लगती हैं। मृदा में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीवों की संख्या व विविधता भी इससे प्रभावित होती है। अनवरत जैविक प्रदूषक पर्यावरण तथा मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हैं।

रंजक प्रदूषक

आजकल कपड़ा, दवाई व छापाखाना में कई प्रकार के रंजकों का उपयोग होता है। इनमें एजो अवयव मुख्यतः होता है। कपड़े की छपाई के दौरान कई प्रकार के रंजकों को गंदे पानी के रूप में व्यावसायिक इकाइयों से मृदा व जल निकायों में छोड़ दिया जाता है। जिससे मृदा स्वास्थ्य व जल की गुणवत्ता ह्रास होता है। अजो-रंजन में भारी धातु क्रोमियम व कॉपर को बांधकर रखने का गुण होता है, जो मृदा से होते हुए मनुष्य के शरीर में कई प्रकार के दुष्प्रभावों को जन्म देती है। भारी धातु की कम मात्रा भी मनुष्य में कैंसर जैसे भयानक रोगों को जन्म देती है। रंजक औद्योगिक इकाइयों से निकले गंदे पानी के कारण आसपास के भूमिजल में इनके अवशेष मिले हैं जैसे रतलाम और बिचेरी में। बड़े शहरों के किनारे होने वाली फसलों में इन प्रदषकों का नकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है। मृदा में पाये जाने वाले सक्ष्मजीवों की संख्या भी तीव्र गति से कम होती है, जब रंजकयुक्त गंदे पानी का उपयोग कृषि कार्यों में किया जाता है।

एंटीबायोटिक प्रदूषक

मनुष्य को बीमारियों से बचाने के लिए विभिन्न प्रकार की एंटीबायोटिक दवाइयों का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा इनका उपयोग कषि व पशपालन में भी किया जाता है। लेकिन इसका अधिकतर भाग मनुष्य या पशु के शरीर द्वारा अवशोषित नहीं होता है और यह मलमूत्र के द्वारा नगरीय गंदे पानी में मिल जाता है। इसके अलावा अस्पतालों में काम में ली जाने व बची हुई एंटीबायेटिक दवाइयों का बिना किसी उपचार के निस्तारण कर दिया जाता है, जो कि मृदा, जल व मानव स्वास्थ्य के लिए कई चुनौतियों को जन्म देती हैं। महानगरों से होकर गुजरने वाली नदियों में भी शहरी एंटीबायोटिक दवाइयों के अवशेष आसानी से मिल जाएंगे। लेकिन इस प्रदूषक के निस्तारण के लिए लोगों में भी जागरूकता कम है तथा अस्पताल भी पर्यावरण नियमों की अनदेखी करके सामान्य सीवेज नालों में बहा देते हैं। जब ये एंटीबायोटिक मृदा में प्रवेश  करते हैं तो कई प्रकार से मृदा चक्र प्रभावित होते हैं। फसल की पैदावार में कमी आती है। इसके अलावा ये मनुष्य में एंटीबायोटिक प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देती हैं, जिससे हानिकारक बैक्टीरिया, वायरस, फफूंदी पर एटीबायोटिक दवाइयों का असर कम होता है। इनके दुष्प्रभाव से कई नये हानिकारक सूक्ष्मजीवों का उद्भव होता है।

सारणी 1. मृदा सूक्ष्मजीवों द्वारा कार्बनिक प्रदूषक विघटन

सूक्ष्मजीव

प्रदूषक

क्लोस्ट्रिडियम स्पीशीज

डाइएल्ड्रिन व एल्ड्रिन

एल्कालीजीन्स स्पीशीज

 

बैसिल्स स्पीशीज

 

साइनोबैक्टीरिया

 

स्यूडोमोनस स्पीशीज

डीडीटी

गेनोडर्मा स्पीशीज

लिण्डेन

वैसिल्स स्पीशीज

 

एंट्रोबेक्टर सीरेस

क्लोरीपाइरीफॉस

ऐरोमोनस स्पीशीज

 

बैसिल्स स्पीशीज

 

फ्लेवोबैक्टर स्पीशीज

 

आर्थोबैक्टर पॉलीक्रोमोजीन्स

फीनांथ्रेन

बेकरस यीस्ट

ऐट्राजोन बेसिक रंजक

एस्पजील्स स्पीशीज

 

गोर्बोना स्पीशीज

 

स्यूडोमोनास प्यूरीडा

 

आपेंस लेक्टीएस

पाइरीन

डेबरी ओमाइसीज पॉलीमार्फस

प्रतिक्रियाशील काली व रंजक

निवारण

कार्बनिक प्रदूषकों के कारण होने वाले इनसे हानिकारक प्रभावों की विवेचना से पता चलता है कि इनकी विषाक्तता बहुत अधिक है, इनसे कैसे इससे बचा जा सकता है। इस बारे में कुछ उपचार व सावधानियां यहां दी जा रही हैं, जो इस प्रकार हैं:

कार्बनिक प्रदूषकों का हानिकारक प्रभाव

  • ये मनुष्य में कई प्रकार की बीमारियों को जन्म देते हैं जैसे मोतियाबिंद, लीवर व गुर्दा क्षति, पीलिया, कैसर। इसके अलावा ये शरीर के तंत्रिका तंत्र, श्वसन तंत्र, हार्मोन स्रावित तंत्र तथा जनन तंत्र को भी प्रभावित करते हैं।
  • इनकी सूक्ष्म सांद्रता भी पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित कर सकती है, जिससे खाद्य श्रृंखला प्रभावित होती है। जैसे गिद्ध जनसंख्या का कम होना।
  • इनकी कम मात्रा भी मृदा के सूक्ष्मजीवों की उपापचयी क्रियाएं तथा वृद्धि व जनसंख्या को कम कर सकती है।
  • यह पौधों की वृद्धि दर तथा उत्पादकता को कम कर देती है।
  • जलीय जीवों पर कार्बनिक प्रदूषकों का असर अधिक बढ़ता है।

न्यूनतम उपयोग

कार्बनिक रसायनों का उपयोग कम करना चाहिए। आजकल लोग कीट-पतंगों के शुरुआती प्रकोप में ही कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग करने लग जाते हैं, जबकि रसायनों का प्रयोग जरूरत से अधिक नही करना चाहिए। इसके अलावा आसानी से पर्यावरण में विघटित होने वाले कार्बनिक रसायनों का प्रयोग करें। गांवों व शहरों में लोगों में विभिन्न माध्यमों से जागरूकता पैदा की जानी चाहिए। रसायनों के अधिक उपयोग वाले क्षेत्रों में खाद्य विभाग द्वारा मृदा व फसल की सामयिक जांच होनी चाहिए।

विघटित करने वाले सूक्ष्मजीवों का उपयोग

मृदा में सूक्ष्मजीव विभिन्न प्रकार की गंदगी को साफ करने वाले सफाई कर्मचारी हैं। इस प्रकार के जीव सभी प्रकार के कार्बनिक जलीय जीवों पर कार्बनिक प्रदूषकों को मिट्टी से साफ नहीं कर सकते हैं। कुछ सूक्ष्मजीव सारणी-1 में दिये गये हैं, जो रसायन विशेष के प्रति संवेदनशील हैं।

मृदा एंजाइम

मृदा में उपस्थित कई प्रकार के मृदा एंजाइम भी कार्बनिक प्रदूषकों के विघटन के लिए मददगार होते हैं। ये एंजाइम विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीवों द्वारा संश्लेषित होते हैं।

प्रकाश रासायनिक अपघटन

इस प्रकार की विधियां मृदा में उपस्थित PAHs व एंटीबायोटिक कार्बनिक प्रदूषकों को मृदा से हटाने के लिए काम में ली जाती है। इस विधि की उपयोगिता प्रदषक की घुलनशीलता पर निर्भर करती है। इस विधि द्वारा प्रदूषक की विषक्कता में भी परिवर्तन/ कमी आती है। इसके बाद जैविक अपघटन विधियों की कार्यक्षमता में वृद्धि देखी गई।

संवर्धित सूक्ष्मजीव क्रियाएं

प्रकृति में पाये जाने वाले बीटा-प्रोटीओवेक्टर व एसिडोबेक्टर PCBs में अपघटन करने की उच्च क्षमता है। मृदा में पौधों द्वारा स्रावित जड़ रसों के कारण इन सूक्ष्मजीवों की कार्यक्षमता में बढ़ोतरी देखी गई है। सूक्ष्मजीवों के उपयोग से हम रंजक प्रदूषकों को भी मृदा से हटा/कम कर सकते हैं।

अत: कार्बनिक प्रदूषक भी अकार्बनिक प्रदूषकों की तरह ही मृदा, पादप व मानव जीवन के लिए हानिकारक हैं। इनका फसल उत्पादन व घरेलू उपयोग में उचित मात्रा व समय पर ही प्रयोग करें। इनसे होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में आम जनता को जागरूक करके हम पर्यावरण/पारिस्थितिकी को स्वस्थ बनाए रख सकते हैं, जिससे मानव जीवन पृथ्वी पर वरदान साबित हो, न कि अभिशाप।

लेखन: मोहन लाल दौतानियां , जे. के. साहा, सोनालिका साहू, चेतन कुमार दौतानिया और अशोक कुमार पात्र

स्त्रोत: कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार

अंतिम सुधारित : 2/23/2020



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate