दूध के संगठन एवं उसके भौतिक रासायनिक गुणों को जानने के बाद यह आवश्यक हो जाता है कि हम प्रायोगिकी तरीके से यह जान सके की किसी भी दूध की गुणवत्ता कैसी है? क्या वह शुद्ध एवं ताजा है और क्या वह सरकार द्वारा निर्धारित मानको के अनुरूप है या नही? साथ ही यह भी पता चल सके की इसमें कोई मिलावट इत्यादि तो नही की गई है। यह सब जानने के लिए यह जरूरी हो जाता है की हम दूध के कुछ परीक्षण से भी अवगत हो सके।
दूध के गुणों का नियंत्रण दुग्ध उत्पादन केंद्र, दुग्ध संसाधन एवं दुग्ध निर्माण केंद्र एवं वितरण एवं विपणन के दौरान करना पड़ता है। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा की उपभोक्ता को एक सामान्य गुण वाला एवं सही अवस्था में दूध मिल पा रहा है या नही। यदि अच्छी गुणवत्ता वाला दूध होगा तभी अच्छे किस्म के दुग्ध पदार्थ बन सकेंगे। कहने का मतलब यह है कि किन्ही भी परिस्थितियों में प्रयुक्त दूध अच्छी गुणवत्ता का होना चाहिए। दूध की गुणवत्ता से यहाँ निम्नलिखित अभिप्राय है।
(1) दूध शुद्ध एवं ताजा हो और उसमें सभी अवयव सामान्य मात्रा में मौजूद हो।
(2) दूध रोगाणु मुक्त हो।
(3) दूध की गुणवत्ता को खराब करने वाले जीवाणु न्यूनतम हो जिससे दूध को अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सके।
(4) दूध की सुरभि एवं स्वाद रुचिकर हो।
इन सब बातों को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि हम दूध का परीक्षण करे। विभिन्न परीक्षण दूध के गुणों के बारे में सही जानकारी दे सकेगे। इन्ही उद्देश्यों को ध्यान में रख कर यह इकाई तैयार की गई है।
इस इकाई का मुख्य उद्देश्य है कि हम उन सभी परीक्षणों का संक्षेप में प्रायोगिक तरीका बता सके जिससे की दूध की गुणवत्ता का पता लगाया जा सके। साथ ही उन परीक्षणों के बारे में भी बताया जाएगा जो हमें अवगत करा सके की दूध साफ़ सुधरा है और काफी समय तक बिना खराब हुए रखा जा सकता है।
इन परीक्षणों को साकार रूप देने से पहले दूध जिसका हमें परीक्षण करना है उसका नमूना लेना भी आवश्यक होता है। इसलिए इस इकाई में नमूना लेने की विधि के बारे में भी बताया जाएगा। कुल मिलाकर इस इकाई में हम निम्नलिखित बिन्दुओं पर प्रकाश डालेगे।
(1) दूध का नमूना लेना
(2) प्लेट फ़ार्म परीक्षण
(क) संवेदिक परीक्षण
(ख) क्लाट आन व्यायलिंग दूध उबालने पर फटना
(ग) तलछट परीक्षण
(घ) अल्कोहल परीक्षण
(ङ) 10 मिनट रिसाजुरीन परीक्षण
(3) प्रयोगशाला परीक्षण
(क) वसा परीक्षण
(ख) वसा रहित ठोस परीक्षण (लैक्टोमीटर विधि)
(ग) अध्ययन परीक्षण
(घ) प्लेट कालोनी परीक्षण
(ङ) फासफटेज परीक्षण
दूध के बारे में भी कुछ विशेष बाते दूध का नमूना लेते समय ध्यान में रखना चाहिए। वह यह की दूध एक द्रव है और साथ में ही इसमें अच्छी मात्रा में वसा होती है जो कि पानी से भी हल्की होती है। इसलिए जब दूध कुछ समय के लिए स्थिर अवस्था में रख दिया जाता है तब वसा सतह पर आ जाती है। इसलिए यदि दूध का नमूना बिना मिलाए ले लिया जाय तब यह कुल दूध का प्रतिनिधित्व नही कर सकेगा। इसलिए दूध का नमूना लेने के पहले दूध को अच्छी तरह से मिला लिया जाना चाहिए। इसके लिए मथनी की तरह का स्टर होता है उससे दूध को भली-भांति मिला लेना चाहिए। यदि नमूना कम दूध वाले बर्तन से लेना हो तो उसे दो बर्तनों में उल्ट-पलट लेना चाहिए।
नमूना लेने की प्रक्रिया, नमूने की मात्रा, जांच हेतु उनका रखरखाव या फिर एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने की प्रक्रिया, एवं परख किए जाने वाले गुणों पर निर्भर करता है। अगर तुरंत जांच सम्भव न हो तो नमूने को कम तापक्रम 5 डिग्री सें. पर आवश्यकतानुसार परिरक्षक मिला कर या फिर दूध उत्पाद के लिए विद्यमान दिशा निर्देश का अनुपालन कर भंडारण कर सकते हैं।
साधारणतया यदि केवल वसा का परीक्षण करना हो तो 50 से 60 मिली. दूध की आवश्यकता होती है। अन्य परीक्षण जैसे आपेक्षिक घनत्व इत्यादि निकालना हो तो 250 से 500 मिली. तक नमूना लिया जा सकता है।
वे परीक्षण जो बिना प्रयोगशाला के कम समय में किए जाए और जिनके लिए मूल्यवान उपकरणों की आवश्यकता न पड़े तथा जिन्हें दूध प्राप्ति के स्थान पर तुरंत कर लिया जाए, प्लेटफार्म परीक्षण कहलाते है। इन परीक्षणों का वर्णन अग्र प्रकार है।
संवेदिक परीक्षण
इन परीक्षणों में दूध को चखकर, सूंघकर तथा रंग इत्यादि देखकर श्रेणीकरण किया जाता है। अत: इन परीक्षणों में केवल इन्द्रियों का प्रयोग होता है। इस प्रकार के परीक्षणों को आजकल दो श्रेणी में बाटा जा सकता है।
(क) चाहत
(ख) अलगाव
चाहत – इस परीक्षण में उपभोक्ता की पसंद का ख्याल रखा जाता है। इसके लिए काफी बड़ी संख्या में उपभोक्ताओं का चयन करके उन्हें दूध या अन्य पदार्थ जिनका परीक्षण करना हो, दिए जाते हैं। इसमें यह जरूरी नही है कि उपभोक्ताओं को दूध के विभिन्न पहलुओं की अच्छी जानकारी हो। उपभोक्ताओं को उनकी पसंद को एक निश्चित शब्द के रूप में प्रदर्शित करने को खा जाता है। इसके लिए भी एक विशेष किस्म की श्रेणी उन्हें दी जाती है जिसे हम हेडोनिक स्केल कहते है। यह एक से 9 नम्बरों की होती है। यदि उपभोक्ता किसी पदार्थ को श्रेष्ठतम मानता है तब वह उसे 9 नम्बर देगा और इसके विपरीत यदि पदार्थ को अवांक्षनीय मानता है तब उसे एक नम्बर देगा। पांच नम्बर देने का मतलब होगा की पदार्थ न ही अच्छा है और न ही खराब। इसी प्रकार 6, 7 एवं 8 नम्बर क्रमश: संतोष जनक, अच्छा और ज्यादा अच्छा की श्रेणी में रखे जाते है। 4, 3 एवं 2 नम्बरों का मतलब होगा असंतोष जनक, खराब और ज्यादा खराब। इस हेडानिक स्केल को निम्नलिखित रूप में प्रदर्शित कर सकते है।
तालिका 1. हेडोनिक श्रेणी द्वारा दूध का वर्गीकरण
श्रेणी नम्बर |
दूध का वर्गीकरण |
नमूना 1 |
नमूना 2 |
9 |
श्रेष्ठतम |
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8 |
बहुत अच्छा |
|
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7 |
अच्छा |
|
|
6 |
संतोषजनक |
|
|
5 |
न अच्छा न खराब |
|
|
4 |
असंतोषजनक |
|
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3 |
खराब |
|
|
2 |
बहुत खराब |
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|
1 |
अवांक्षनीय |
|
|
(1) अलगाव विधि
इस विधि में जानकार लोगो की जरूरत पड़ती है। केवल वही लोग इस विधि में निर्णायक बन सकते है जो कि दूध के बारे में अच्छी जानकारी रखते हो और उनकी स्वाद इंद्रियां अच्छी प्रकार से कार्य करती हो। इसमें अपेक्षाकृत कम निर्णायकों की जरूरत पड़ती है। 5 से 10 लोगों से कार्य चल सकता है जबकि प्रथम विधि में दूध के वर्गीकरण के लिए काफी ज्यादा उपभोक्ताओं की आवश्यकता पड़ती है। इस कार्य में संलग्न लोगों के लिए भी एक ट्रेनिंग देनी पड़ती है।
एक बार में निर्णायकों को कई नमूने दिए जाते है और उन्हें दूध के विभिन्न गुणों जैसे स्वाद रंग, गंदगी की मात्रा, तापक्रम एवं जीवाणुओं इत्यादि के आधार पर उपयुक्त नम्बर देने पड़ते है। एक निश्चित नम्बर से कम नम्बर प्राप्त करने पर दूध को अलग कर दिया जाता है। विभिन्न पहलुओं पर दिए जाने वाले नम्बर तालिक 2 में दर्शाए गए है।
तालिका 2. दूध वर्गीकरण का स्कोर कार्ड
गुण का नाम |
कुल नम्बर |
रेन्ज |
नमूना 1 |
नमूना 2 |
स्वाद तथा सुरस |
45 |
31-45 |
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|
तलछट |
10 |
5-10 |
|
|
पैकेज |
5 |
1-5 |
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जीवाणु |
25 |
20-25 |
|
|
रंग |
10 |
5-10 |
|
|
तापक्रम |
5 |
1-5 |
|
|
क्लाट आन ब्वायलिंग (दूध उबालने पर फटना)
प्लेटफ़ार्म पर किए जाने वाले परीक्षणों में संवेदिक परीक्षणों के बाद यह सबसे उपयुक्त और उपयोगी परीक्षण है। इससे यह पता लग जाता है कि क्या दूध का उपयोग हम अन्य पदार्थो के बनाने में काम में ले सकते है या नही। यह परीक्षण अपरोक्ष रूप से दूध की रखरखाव क्षमता का भी द्योतक है। यानि की दूध कितना पुराना है यह इस परीक्षण से बताया जा सकता है।
इस परीक्षण के लिए एक छोटा सा बीकर या टेस्ट ट्यूब लेते है उसमें दूध की थोड़ी मात्रा लेकर कुछ देर तक के लिए गर्म करते हैं। यदि दूध फट जाता है तब उसे सी.ओ.बी. पाजिटिव मानते है और न फटने पर निगेटिव मानते है। सी.ओ.बी. पाजिटिव होना यह बतलाता है की दूध खराब है। दूध ज्यादा देर तक रखे रहने से अम्लता बढ़ जाती है और दूध गर्म करने पर फट जाता है। साधारणतया अम्लता या तो 0.22% तक इससे अधिक होने पर दूध फट जाता है।
तलछट परीक्षण
इस परीक्षण से दूध की गुणवत्ता तथा स्वच्छता का पता चलता है। यह दूध में धूल तथा अन्य कूड़ा करकट की उपस्थिति उत्पादन व रखरखाव के दौरान अस्वच्छता व लापरवाही को दर्शाता है। इस परीक्षण में दूध में उपस्थति धूल का मापन किया जाता है। यदि धूल की मात्रा निर्धारित मानक से ज्यादा होती है तब उस दूध को अच्छा नही समझा जाता है।
इस परीक्षण में 1” व्यास वाली एक छलनी को किसी बर्तन पर रख लेते है और फिर एक निश्चित मात्रा के दूध को (लगभग 0.5 लीटर) इस छलनी द्वारा छानते है। उसमें उपस्थित धूल एवं अन्य कण 1” व्यास वाली छलनी पर इकट्ठा हो जाते है। इसी आकार की मानक जालियां पहले से ही तैयार की हुई रहती है या मिलती है। अपने दूध के नमूने से प्राप्त छलनी की तुलना मानक जातियों से करके यह पता लगा सकते है कि दूध में धूल एवं अन्य कणों की मात्रा निर्धारित मान से कम है या ज्यादा। उसी आधार पर दूध का वर्गकिरण किया जा सकता है।
अल्कोहल परीक्षण
यह परीक्षण भी दूध की अम्लता तथा लवण असंतुलन पर ही आधारित है लेकिन यह ख़ास उद्देश्य से किया जाता है। इस परीक्षण से यह पता लगाया जा सकता है कि दूध जो की प्लेटफार्म पर प्राप्त किया गया है वह पास्तुरीकरण योग्य है अथवा नही। चूँकि हर दूध जो डेरी संयत्रों पर जाता है और उसे पीने के लिए योग्य बनाना है तब उसे पास्तुरीकृत करना पड़ता है।
इस परीक्षण के लिए एक परखनली में थोड़ा सा दूध (लगभग 10 मिली. दूध जिसका परीक्षण करना है ले लेते है। इसके पहले से ही 70% अल्कोहल को उतनी ही मात्रा (10 मिली.) मिला कर उसे हिलाते है। यदि यह दूध पास्तुरिकरण के उपयुक्त है तो फटेगा नही अन्यथा फट जाएगा।
10-मिनट रिसाजुरीन परीक्षण
यह परीक्षण अपचयन परीक्षण, जिसका वर्णन विस्तार से प्रयोगशाला परीक्षण वाले अध्याय में किया गया है का ही एक बदला एवं छोटा रूप है जो केवल 10 मिनट में ही दूध की गुणवत्ता में बता देता है। यह परीक्षण जीवाणुओं की संख्या एवं उनके क्रिया कलापों पर आधारित है।
एक परखनली में 10 मिली. दूध लेते है फिर उसमें 1 मिली. रिसाजूरीन घोल मिला देते है। अच्छी तरह से मिलाने के बाद एक जल उष्मक जिसका तापक्रम 37 डिग्री सें. पर निर्धारित किया हुआ है में रख देते है। 10 मिनट तक रखे रहने के बाद उसे बाहर निकाल लेते है जिसका रंग उस दूध में उपस्थित जीवाणुओं के आधार पर बदल जाता है। लोविबांड कम्परेटर जो की एक संयंत्र है और उसमें 1 से 6 तक की डिस्क विभिन्न रंगों को प्रदर्शित करती है विद्यमान होती है। विभिन्न रंग, दूध में उपस्थित जीवाणुओं की संख्या (लगभग) प्रदर्शित करती है। 10 मिनट बाद जो रंग दूध में आ जाता है। उसकी तुलना कम्परेटर में बनी डिस्क से करते है यदि डिस्क का रंग 10 मिनट में 4 नम्बर की डिस्क या उसके ऊपर यानी 5 या 6 बराबर है तब उस दूध को अच्छे किस्म का दूध माना जाना चाहिए। यदि रंग से तीन नम्बर की डिस्क से मेल खाता है तब उसे संतोष जनक माना जाना चाहिए। रंग डिस्क 1 से भी कम होने पर दूध घटिया किस्म का होता है।
प्लेटफार्म पर दूध के नमूने एकत्रित कर संयत्र को प्रयोगशाला में भेजे जाते है जहां पर विधिवत उनका रासायनिक संगठनात्मक एवं जीवाणु आधारित विश्लेष्ण किया जाता है। वैसे तो प्रयोगशाला परीक्षणों की काफी लम्बी सूची है और उन सभी का वर्णन करना यहाँ पर सम्भव नहीं हो सकेगा। इसी को ध्यान में रखकर केवल कुछ विशेष परीक्षणों का वर्णन यहाँ पर किया गया है। ये पपरीक्षणों निम्नवत है।
वसा-परीक्षण
प्रयोगशाला में दूध परीक्षण के लिए जब भी लाया जाता है, सबसे पहले उसकी गुणवत्ता की जांच के लिए वसा परीक्षण ही किया जाता है। वह इसलिए की वसा, दूध की गुणवत्ता का एक प्रमुख द्योतक है। कुछ हद तक इससे पता चलता है कि क्या दूध में पानी का अपमिश्रण हुआ है या नही। सरकार की तरफ से भी दूध की शुद्धता के लिए दूध में एक निश्चित वसा के होने का भी प्रावधान दिया है। इन्ही सभी कारणों की वजह से दूध में वसा का परीक्षण करना आवश्यक हो जाता है।
वैसे तो दूध में वसा ज्ञात करने के अनेक तरीके वैज्ञानिको ने खोज निकाले है। लेकिन जो सबसे अच्छा, आसान, एवं विश्वसनीय तरीका है उसे हम गरबर विधि कहते है इसलिए हम इस अध्याय में गरबर विधि का ही वर्णन करेगे।
सिद्धांत
गरबर नली जिसे हम व्यूटायरोमीटर कहते है में एक निश्चित मात्रा का दूध लेकर, उसके प्रोटीन को गंधक के तेज़ाब से विघटित कर दिया जाता है। तत्पश्चात उसमें अमाइल अल्कोहल डाल कर दूध एवं मिश्रण का पृष्ठ तनाव कम कर लेते है। ब्यूटायरोमीटर को मिश्रण सहित सेंट्रीफ्यूज में लगभग 1100 च्रक प्रति मिनट की दर से 5 मिनट तक घुमाते है। वसा हल्की होने के कारण ब्यूटायरोमीटर की ऊपरी स्केल पर आ जाती है जिसे माप लिया जाता है।
प्रयोग में आने वाले यंत्र एवं उपकरण
विधि
वसा रहित ठोस परीक्षण
दूध में वसा रहित ठोस की मात्रा ज्ञात करने के लिए भारात्मक विधि अपनाई जाती है। इसके अलावा लैक्टोमीटर द्वारा भी इसकी प्रतिशत मात्रा निर्धारित की जा सकती है। हम यहाँ लैक्टोमीटर विधि द्वारा ही वसा रहित ठोस निर्धारण की विधि का वर्णन करेगे।
लैक्टोमीटर विधि
सिद्धांत
एक निश्चित भार के आयतन को ज्ञात करके, आपेक्षिक घनत्व निर्धारण करने की विधि में लैक्टोमीटर का प्रयोग किया जाता है। यह एक तैरने वाला हाइड्रोमीटर होता है। डेरी उद्योग में दूध का आपेक्षिक घनत्व ज्ञात करने के लिए प्रयुक्त विधियों में यह सर्वाधिक प्रचलित विधि है क्योंकि इस विधि से आपेक्षिक घनत्व का निर्धारण बड़ी सुगमता एवं शीघ्रता से हो जाता है।
इसके द्वारा आपेक्षिक घनत्व की गणना इस सिद्धांत पर निर्भर करती है की जब लैक्टोमीटर को द्रव में डुबोया जाता है तब वह अपने भार के बराबर द्रव को विस्थापित करता है। विस्थापित द्रव का आयतन अधिक होने पर द्रव का आपेक्षिक घनत्व कम होता है। लैक्टोमीटर में ऊपर की तरफ चिन्हित पॉमाना होता है। जिस पर विस्थापित द्रव की मात्रा को परिवर्तित अंको के रूप में आसानी से पढ़ा जा सकता है। यह अंक विस्थापित द्रव के आयतन को बिलकुल सही तो नही दर्शाते फिर भी इससे संबंध अवयव रखते है तथा द्रव के आपेक्षिक घनत्व को इंगित करते है। इसी के सहारे द्रव में उपस्थित ठोस या वसारहित ठोस का अनुमान एक दिए हुए फार्मूले से निकाल लिया जाता है।
उपकरण
विधि
27 डिग्री सें. तापक्रम पर लैक्टोमीटर रीडिंग को संसोधित लैक्टोमीटर रीडिंग कहते है। दूध का तापक्रम 27 डिग्री सें. न होने पर रीडिंग को तापक्रम मान के आधार पर संसोधित कर लिया जाता है। तापमान 27 डिग्री सें. से ज्यादा होने पर प्रति एक डिग्री ज्यादा तापमान के लिए 0.1 की रीडिंग लैक्टोमीटर रीडिंग में जोड़ दी जाती है और कम होने पर प्रति एक डिग्री तापमान पर 0.1 के हिसाब से घटा दी जाती है। उदाहरण के लिए यदि लैक्टोमीटर रीडिंग 37 डिग्री सें. पर 25 है तब संशोधित रीडिंग 26 हो जाएगी ओर यदि रीडिंग 17 डिग्री सें. पर ली गई थी तब संसोधित रीडिंग 24 हो जाएगी।
इस संसोधित लैक्टोमीटर रीडिंग की सहायता से दूध का आपेक्षिक घनत्व निम्नलिखित सूत्र से ज्ञात कर लेते है।
आपेक्षिक घनत्व = 1 + संसोधित लैक्टोमीटर रीडिंग/1000
लैक्टोमीटर पाठ्यांक (रीडिंग) का संबंध दूध में उपस्थित वसा रहित ठोस पदार्थो के प्रतिशत से भी होता है। कई वैज्ञानिक लैक्टोमीटर पाठ्यांक के आधार पर दूध की वसा रहित ठोस या कुल ठोस निकालने के विभिन्न सूत्र बना चुके है। रिचमांड वैज्ञानिक द्वारा संशोधित सूत्र निम्नलिखित है:-
कुल ठोस% = 0.25एल + 1.21 एफ + 0.66
जहां एल = लैक्टोमीटर पाठ्यांक 68 डिग्री फारेनहाइट पर
एफ = वसा प्रतिशत
कुल ठोस ज्ञात करने के बाद उसमें से वसा प्रतिशत घटा देने पर वसा रहित ठोस का प्रतिशत मालूम हो जाता है।
यदि सीधे-सीधे वसा रहित ठोस का प्रतिशत दूध में ज्ञात करना हो तो निम्नलिखित सूत्र का भी सहारा ले सकते है।
वसा रहित ठोस% = संशोधित लैक्टोमीटर पाठ्यांक (सीएलआर) x (0.2 x % वसा)/4
अपचयन परीक्षण
सिद्धांत
इस विधि द्वारा दूध में उपस्थित जीवाणुओं की संख्या का पता उनके द्वारा ली गई आक्सीजन के आधार पर लगाया जाता है। इस विधि में दूध को एक रंजक के साथ मिलाया जाता है। दूध में उपस्थित आक्सीजन उसमें उपस्थित जीवाणुओं द्वारा उपयोग में लाने पर लिए गए गत रंजक का रंग उड़ जाता है। वैज्ञानिकों ने रंग के परिवर्तन का संबंध उसमें उपस्थित जीवाणुओं से लगा रखा है। उन्ही रंगो के आधार पर दूध में जीवाणुओं की संख्या आंकी जाती है। इस विधि में दो प्रकार के रंजक प्रयोग किए जाते है जिनके आधार पर परीक्षण का नाम भी दे दिया गया है जो निम्नवत है।
(1) मिथाइलिन ब्लू रिडक्सन परीक्षण
(2) रिसाजुरिन रिक्सन परीक्षण
मिथाइलिन ब्लू परीक्षण
(1) एक परखनली में 10 मिली. दूध लेते है।
(2) उसमें 1 मिली. मिथाइलिन ब्लू का घोल डालते है।
(3) मिश्रण को अच्छी तरह से मिलाकर जल उष्मक जिसका तापक्रम 37 डिग्री सें. पर निर्धारित कर लिया गया हो में रख देते है।
(4) प्रत्येक 30 मिनट पर रंग की तुलना कंट्रोल से करते है।
(5) नीला रंग उड़ने में जो समय लगता है उसके आधार पर दूध में उपस्थित जीवाणुओं की संख्या तथा दूध की गुणवत्ता आंकी जाती है।
निम्नलिखित तालिका के आधार पर जीवाणुओं की संभावित संख्या एवं दूध की गुणवत्ता मापी जा सकती है।
दूध की गुणवत्ता |
रंग उड़ने की अवधि |
जीवाणुओं की संख्या/मिली दूध में |
उत्तम दूध |
4 ½ घंटे से अधिक |
2 लाख व कम |
सामान्य दूध |
2 ½ घंटे से 4 ½ घंटे |
2 लाख से 20 लाख |
खराब दूध |
2 ½ घंटे से कम |
20 लाख से अधिक |
रिसाजुरिन परीक्षण
इस परीक्षण के बारे में थोड़ा बहुत 10 मिनट रिसाजुरिन परीक्षण जो की प्लेट फ़ार्म परीक्षण में आता है बताया जा चुका है। इस की विधि बिलकुल मिथाइलिन ब्लू की तरह ही है केवल उस रंजक की जगह 1 मिली. रिसाजुरिन रंजक दूध (10 मिली.) के साथ डाला जाता है। इसे 1 घंटे तक जल उष्मक में रखने के बाद रंग में परिवर्तन की तुलना निम्नलिखित डिस्क और उसके रंग से करके दूध की गुणवत्ता आंकी जाती है।
डिस्क का मान |
दूध का रंग |
दूध की गुणवत्ता |
6 |
नीला |
उत्कृष्ट |
5 |
नीलक |
बहुत अच्छा |
4 |
बैगनी |
अच्छा |
3 |
गुलाबी जामुनी |
सामान्य |
2 |
जामुनी गुलाबी |
खराब |
1 |
गुलाबी |
बहुत खराब |
0 |
रंगहीन |
अति खराब |
प्लेट कालोनी परीक्षण
दूध में जीवाणुओं की संख्या उसकी गुणवत्ता को दर्शाता है। यदि इन जीवाणुओं को दूध में पनपने दिया जाए तो ये दूध में तरह-तरह के रासायनिक परिवर्तन ला सकते है। दूध में बहुधा बीमारी फैलाने वाले जीवाणु भी मौजूद रहते है कभी-कभी कुछ जीवाणु दूध में उपयोगी कार्य भी कर सकते है। इन सब बातों को ध्यान में रख कर दूध में इनकी उपस्थिति का पता लगाना आवश्यक हो जाता है। इसलिए प्लेट कालोनी परीक्षण दूध में जीवाणुओं की संख्या जानने के ली किया जाता है।
इस परीक्षण के लिए दूध की एक निश्चित मात्रा लेकर वृद्धि माध्यम में मिलाते है प्लेट्स को 32 डिग्री सें. तापक्रम पर 48 घंटे रखने पर दूध में उपस्थित प्रत्येक जीवित जीवाणु माध्यम में एक दिखने वाली कालोनी बना लेते है जिन्हें गिन कर दूध में उपस्थित जीवाणुओं का पता लग जाता है।
उपकरण
(1) पेट्री प्लेट्स (एक जोड़ा)
(2) दूध को पतला करने के लिए नापने वाले सिलिंडर
(3) पिपेट, 1 मिली. एवं 20 मिली.
(4) अगर मीडियम या वृद्धि माध्यम
(5) इनकुवेटर
(6) स्ट्रेलाइजर (बर्तनों को जीवाणु रहित करने का यंत्र)
(7) आटोक्लेब (मीडियम को निर्जीवीकरण करने का यंत्र)
(8) कालोनी गिनने का यंत्र
विधि
(1) 1 मिली दूध के नमूने को पानी मिलाकर (जीवाणु रहित) पतला कर लेते है (लगभग10-4 से 10-6 तक)
(2) पिपेट की सहायता से पतले दूध का 1 मिली. दोनों प्लेटों में अलग-अलग डालते है।
(3) अगर मीडियम को 20 मिली. (40 डिग्री सें.) लेकर प्रत्येक प्लेट में अलग-अलग डालते है।
(4) मीडियम को दूध में अच्छी तरह से हिलाकर मिला लेते है।
(5) मीडियम जब ठोस बन जाए तब दोनों प्लेटों पर “ए” और “बी” लिखकर इनकुलेटर में 32 डिग्री सें. पर 48 घंटे के लिए रख देते है।
(6) इसके बाद कालोनी काउन्टर की सहायता से दोनों प्लेटों ‘ए’ तथा ‘बी’ पर बनी कालोनी को अलग-अलग गिन कर नोट कर लेते है।
(7) दोनों प्लेटों पर बनी कालोनी का औसत ले लेते है वही औसत वाला कालोनी नम्बर पतले 1 मिली. दूध में उपस्थित जीवाणुओं का नम्बर होता है।
(8) उस नम्बर को दूध के पतले किए गए नम्बर यानी 10-4 या 10-6 से गुणा करके प्रति मिली. दूध में जीवाणुओं की संख्या रिपोर्ट की जाती है।
फासफटेज परीक्षण
यह परीक्षण यह देखने के लिए किया जाता है की क्या दूध पूर्ण रूप से पास्तुरीकृत है या नही। पूर्ण रूप से पास्तुरीकृत दूध में फासफटेज नामक किण्वक पूरी तरह से नष्ट हो जाता है। दूध में इसकी उपस्थिति यह दर्शाती है की वह पूर्ण रूप से पास्तुरीकृत नही है। इस परीक्षण द्वारा यही पता लगाया जाता है कि क्या दूध में फासफटेज नामक किण्वक है या नही। इस किण्वक की उपस्थिति इसकी रासायनिक क्रिया के आधार पर किया जाता है।
विधि
इस विधि में एक परखनली में लगभग 10 मिली. दूध लेकर लगभग 5 मिली. की मात्रा में डाइसोडियम पैरा नाइट्रोफिनाइल फास्फेट मिलाते है दोनों को अच्छी प्रकार से मिश्रित कर लेते है तत्पश्चात 15-20 मिनट के लिए रख देते है। यदि इस दूध के नमूने में फासफटेज नामक किण्वक अभी भी जीवित दशा में है तब वह इस मिश्रण को जल अपघटित करके फिनाल उत्पन्न कर देता है। एक विशेष डिस्क की सहायता से दूध में फिनाल की उपस्थिति का पता लगा लिया जाता है। फिनाल की अनुपस्थिति यह बताती है कि दूध पूर्ण रूप से पास्तुरीकृत है।
दूध की गुणवत्ता तथा उसमे मिलावट आदि का पता लगाने के लिए दूध के परीक्षणों की जानकारी जरूरी है। इसके अंतर्गत दूध का नमूना लेने से शुरू करते हुए पहले प्लेटफार्म परीक्षण किए जाते है। प्लेटफार्म परीक्षण के अंतर्गत संवेदिक परीक्षण, सी.ओ.बी.टेस्ट, तलहट परीक्षण, अल्कोहल परीक्षण तथा 10 मिनट रिसाजुरिन परीक्षण सम्मिलित किए गए है। डेयरी में दूध को अंदर लाने से पहले इन परीक्षणों को किया जाता है। प्रयोगशाला परीक्षणों में मुख्यत: वसा परीक्षण (गरबर सेंट्रीफ्यूज द्वारा) वसा रहित ठोस परीक्षण, मिथाइलिन ब्लू परीक्षण, रिसाजुरिन परीक्षण सम्मिलित है। प्रयोगशाला परीक्षण में प्लेट कालोनी परीक्षण व फास्फेटेज परीक्षण सम्मिलित है। प्लेट कालोनी परीक्षण से दूध में जीवाणुओं की संख्या का पता चलता है।
स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय
अंतिम सुधारित : 3/4/2020
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