झारखण्ड में लगभग 10 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि अम्लीय भूमि के अंतर्गत आती है, जो मुख्यतः दुमका, जामताड़ा, पूर्वी सिंहभूम, रांची, गुमला एवं गढ़वा जिलों में पायी जाती हैं। अम्लीय भूमि को समस्या ग्रस्त भूमि कहते हैं, क्योंकि इसमें अम्लीयता के कारण उसकी उपजाऊ शक्ति में कमी आ जाती है। ऐसी भूमि से उत्पादन की पूर्ण क्षमता दोहन करने के लिए रसायनिक खादों के साथ-साथ चूने का सही प्रयोग सबसे अटल व उपयोगी उपाय हैं।
मिट्टी की अम्लीयता एक प्राकृतिक गुण है, जो कि फसलों की पैदावार पर महत्वपूर्ण असर डालता अहि। जहाँ अधिक वर्षा के कारण भूमि की उपरी सतह से क्षारीय तत्व जैसे –कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि पानी में बह जाते हैं जिसके परिणाम स्वरुप मृदा पी.एच. मान 6.5 से कम हो जाता है, ऐसी भूमि को हम अम्लीय भूमि कहते हैं।
वास्तव में जिस भूमि का पी.एच. 5.5 से नीचे हो इसमें हमें अधिक पैदावार हेतु प्रबन्धन की आवश्यकता होती है। झारखण्ड राज्य में लगभग 4 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि का पी.एच. 5.5 से नीचे हैं। देश भर में अम्लीय भूमि पर हो रहे वैज्ञानिक शोधों से अब यह बात पैदावार बिलकुल तय है कि चूने के प्रयोग से भूमि की अम्लीयता खत्म कर इसकी पैदावार में बढ़ोतरी की जा सकती है। इसके लिए बजारू चूना खेतों में डालने चूना खेतों में डालने से काम लाया जा सकता है।
अम्लीय क्षेत्रों पर किये गये शोधों के निष्कर्ष पर यह सिद्ध हो चूका है कि बाजारू चूना के अलावे अन्य क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध बेसिक स्लैग, प्रेस मड, लाईम शेल, पेपर मिल स्लज इत्यादि का प्रयोग सफलतापूर्वक किया जा सकता है।
चूना भूमि की रसायनिक, भौतिक एवं जैविक गुणों में सुधार का कृषि उत्पादन बढ़ाने में सहायता करता है। चूना का मृदा पर प्रभाव निमानंकित है-
अम्लीय भूमि को अच्छा बनाने हेतु चुना की कितनी मात्रा डाली जाए, यह प्रयोगशाला में मिट्टी परीक्षण द्वारा तय होती है। चूना की मात्रा का निर्धारण मुख्यतः चूना के रूप में प्रयोग किये जाने वाले पदार्थ के कणों का व्यास, मृदा पी.एच एवं मिट्टी की संरचना पर न्रिभर करता है। साधारणतः अम्लीय भूमि की पी.एच मान उदासीन स्तर पर पहुंचाने के लिए लगभग 30-40 क्विंटल चूना प्रति हेक्टेयर आवश्यकता पड़ती है। इसे बोआई से पहले छिंट कर खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। इसका असर 4-5 साल तक जमीन में रहता है। अतः जहाँ चूना की मांग के हिसाब से चूना भूमि में डाला गया हो वहां 4-5 साल तक इसे डालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस विधि द्वारा चूना डालने से किसानों को एक बार अधिक खर्च करना पड़ता है। नई खोजों के अनुसार यह पाया गया कि मात्रा 3-4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर चूना प्रतिवर्ष बरसात के मौसम में फसल की बोआई के समय नालियों में डालने से पैदावार में वृद्धि की जा सकती है। क्योंकि चूना कम घुलनशील होता है, इसलिए बारीक बढ़ाई जा सकती है। चूना प्रयोग की यह विधि कम खर्चीला है, इसे हर साल डालना होता है, जब तक भूमि का पी.एच. मान 6.0 तक न पहुँच जाए।
आज के समय जब रसायनिक उर्वरक का मूल्य तेजी में बढ़ता जा रहा है, अम्लीय भूमि में कम्पोस्ट/भर्ती कम्पोस्ट के साथ चूना का प्रयोग कर किसानों द्वारा रासायनिक उर्वरक पर होने वाली खर्च को बचाया जा सकता है। जिससे कृषि व्यवसाय को अधिक लाभकारी बनाया जा सकता है।
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम सुधारित : 2/22/2020
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