फसल क्षतिकारक अनुश्रवण का उद्देश्य खेतों में फसल क्षतिकारक एवं रोगों के प्रारंभिक विकास का अनुश्रवण करना है। क्षतिकारक/रोग की घटनाओं में वृद्धि/कमी की प्रवृत्ति एंव जीव नियंत्रण संभावना की उपलब्धता को आंकने के लिए विस्तार एजेंसियों तथा कृषकों को कीट/रोगों एवं जीव नियंत्रण जीव जन्तु/वनस्पति के लिए खेत का अवलोकन पखवारे में एक बार करना चाहिए।
अतएव विकास के विभिन्न चरणों के अंतर्गत सुनिश्चित अंतराल में फसल क्षतिकारकों एवं रोग की घटनाओं के अवलोकन हेतु कृषकों को खेत की निगरानी के लिए गतिशील किया जा सकता है। पौधा संरक्षण के उपाय तभी किये जाने की आवश्यकता है जब खेत की निगरानी के फलस्वरूप फसल क्षतिकारक एंव रोग प्रारंभिक स्तर (ईटी एल) पार करते हैं।
प्रबन्धन अभ्यास
फसल चरण/कीट |
आईपीएम के घटक |
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बुनने से पूर्वं |
कृषीय प्रक्रिया |
गहरी जुताई |
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फसल आवर्तन अपनाना |
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यांत्रिक प्रक्रिया |
विभिन्न कीट एवं रोगों को कम करने के लिए क्यारी को धूप दिखाया जाना चाहिए। |
अंकुर चरण |
कृषीय प्रक्रिया |
संक्रमण एवं जन्तु प्रकोप से बचाकर मुक्त रखे गये बीज कंद को कम्पोस्ट/पशु खाद में मिलाकर था ट्राईकोडरमा संचारित कर मई के प्रथम पखवारे में मानसून के आने के साथ ही उथली क्यारियोंन में लगाना चाहिए (फरवरी/मार्च में सिंचाई की गई स्थिति में) |
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अदरक की क्यारी को पत्तों से ढकना अनिवार्य है। जैविक गतिविधियाँ बढ़ाने के लिए प्रत्येक ढंकाई के बाद गोबर का पतला घोल अथवा तरल खाद लगाया जा सकता है। |
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पानी का जमाव दूर करने एवं कंद सड़न कम करने के लिए क्यारियों के बीच नालियों की समुचित व्यवस्था हो। |
कंद में खपड़ीदार कीट |
रसायनिक नियंत्रण |
बीज कंद के भंडारण/बुआई से पहले इसे क्विनाल्फोस (0.1%) में दो बार डुबोएं। |
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जीवाणवक मुरझाना |
बीज कंद को 100-200 पीपीएम स्ट्रेप्टोमायसिन के साथ 3.0 मिनट तक उपचारित करें। |
वनस्पतिक चरण |
कृषीय प्रक्रिया |
वयस्क पतिंगों को फंसाने के लिए हल्के जाल लगाएं। |
अंकुर छेदक |
जैविक नियंत्रण |
लंटाना कमारा और वाईटेक्स निगोन्डो का इस्तेमाल अंकुर छेदक का प्रकोप कम कर सकता है। |
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रसायनिक नियंत्रण |
15 दिनों के अंतराल पर नीम का तेल (0.5%) डायमेथोएट या क्विनाल्फोस (0.5%) का छिड़काव करें। |
हल्का सड़न/ कंद सड़न |
कृषीय प्रक्रिया |
ऐसे स्थान का चुनाव करें जहाँ जल निकास की उचित व्यवस्था हो। |
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रोग मुक्त क्षेत्र से बीज कंद का चयन करें। |
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प्रभावित्त पौधे के कंद को आसपास की मिट्टी के साथ खोदकर बाहर निकाल दें। |
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जैविक नियंत्रण |
रोपने के समय एवं बाद में ट्राईकोडरमा का प्रयोग किया जा सकता है। |
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रसायनिक नियंत्रण |
रोपने से पहले बीज कंद को प्रति किलो 4 ग्राम की दर से मेटालेक्सील एमजेड के साथ उपचारित करें। |
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संक्रमित पौधे को खोद कर निकालने के बाद क्यारी को चेस्टनट यौगिक अथवा 1% बोर्डेक्स मिश्रण से सरोबार करें। |
कंद सड़न |
रसायनिक नियंत्रण |
बीजों को 25-30 ग्राम प्रति किलो की दर से थिरम के साथ उपचारित किया जा सकता है। |
पत्तों का मुड़ना |
रसायनिक नियंत्रण |
10.1% कार्बाराइल का छिड़काव करें। |
कंद मक्खी |
रसायनिक नियंत्रण |
डायमेथाएट अथवा मोनोक्रोटोफॉस प्रभावकारी हैं। |
खरपतवार |
यांत्रिक |
प्रत्येक ढंकने से पूर्व खरपतवार हाथ से निकाल दें। रोपने के बाद 6वें और छठे महीने के दौरान खरपतवार बढ़ने के अनुसार दुबारा निकाई करें। |
बीज कंद का रक्षण |
कृषीय प्रकिया |
अदरक के संक्रमण मुक्त कंद को छाया में खोदे गये गड्ढों जिनके तल में बालू अथवा लकड़ी का बुरादा बिछा हो, में भण्डारण करें। |
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गड्ढों को ढंकने के लिए पनाई (ग्लायकोसमिस पेंटा) के पत्तों की कई परतें बिछा कर उन्हें नारियल के पत्तों से ढक देना चाहिए। |
करें |
न करें |
1.केवल अनुशंसित प्रजाति ही उगाएँ |
1.मौसम/क्षेत्र के लिए अनुपयुक्त प्रजाति न उगाएं |
2. यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि बीज के कंद संक्रमण मुक्त हैं। बीज कंदों को रोपते समय ट्राईकोडरमा जैसे जीव नाशक का इस्तेमाल किया जा सकता है। |
2. बीज कंद को किसी रासायन के साथ उपचारित न करें। |
3. प्रत्येक ढकाई एवं उर्वरक लगाने के पूर्व खरपतवार हाथ से निकाल दें। |
3. ढंकने एवं उर्वरक प्रयोग करने से पूर्व निकाई करना न भूलें। |
4.उर्वरक का इस्तेमाल मिट्टी जांच की अनुशंसा के अनुसार करें। |
4. सूक्ष्मपोषक (माईक्रोन्यूट्रीएन्ट्स ) को उर्वरक के साथ न मिलाएं और न मिट्टी में मिलाएं। |
5.जल जमाव को बहाकर हटाने के लिए समुचित जल निकास व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए। |
5. जल जमा मत होने दें। |
6.प्रबन्धन अभ्यास में निर्णय लेने के लिए आयेसा का आयोजन प्रातः 9 बजे से पहले, सप्ताहिक/माह में करें। |
6. कलेन्डर के आधार पर रसायनिक कीटनाशक का प्रयोग न करें। |
7.अंकुर छेदक के वयस्क पतिंगों को संग्रहित व अनुश्रवण के लिए हल्के जाल लगाएं । |
7. कीटों की स्थिति के अनुश्रवण पूर्व किसी भी कीटनाशी का व्यवहार न करें। |
क्र.सं. |
कीटनाशक का नाम |
कीटनाशक अधिनियम 1971 के अनुसार वर्गीकरण |
विषाक्तता त्रिभुज का रंग |
जोखिम के अनुसार डब्ल्यू एचओ वर्गीकरण |
प्रथम उपचार के उपाय |
विष प्रभाव के लक्षण |
विष प्रभाव के उपचार |
प्रतीक्षा अवधि (दिनों की सं.) |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
कीटनाशक – आर्गनोफॉस्फोट कीटनाशक |
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१
2. |
क्विनाल्फोस
मोनोक्रोटोफॉस |
उच्च रूप से विषैला
अत्यंत विषैला |
पीला
चमकदार |
श्रेणी 2 सामान्य रूप से खतरनाक
श्रेणी 1 बी, अति खतरनाक |
प्रदूषित क्षेत्र से व्यक्ति को हटा दें।
(क) चमड़ी से सम्पर्क हो जाने पर सभी प्रदूषित कपड़े उतार दें और साबुन तथा अधिक पानी से धो दें। (ख) आँख में प्रदुषण आँख को साफ एवं ठंडे पानी की अधिक मात्रा में धोंएं। (ग) नाक से प्रदुषण नाक से सांस लेने पर व्यक्ति को खुली आजी हवा में ले जायें, गला और छाती के आस- पास के कपड़े ढीले कर दें। (घ) मुंह से अंदर जाने प् यदि पीड़ित व्यक्ति पूरी तरह होश में है तो गले में ऊँगली डालकर उल्टी कराएं\ दूध, शराब एवं चर्बी वाले पदार्थ न दें। यदि व्यक्ति बेहोश है तो यह सुनिश्चित कर लें की सांस लेने का रास्ते साफ है एवं उसमें में कोई रुकावट नहीं है पीड़ित का सिर थोड़ा नीचा रखकर चेहरे को सोने की स्थिति में एक ओर घुमा देना चाहिए। यदि सांस लेने में कष्ट हो तो मुख से नाक सांस दें। |
हल्का-अर्जिर्ण सिरदर्द, उनींदापन कमजोरी, चिंता जुबान और आंख के पट का कांपना अल्प दृष्टि देखने में कष्ट
माध्यम-मतली आन, लार बहना, आँख से आंसू आना पेट में मरोड़ उल्टी, पसीना, आना नाड़ी की गति धीमी होना, मांसपेशियों में खिंचाव अल्प दृष्टि |
ओ.पी. विषाक्तता के संगीन मामले में एट्रोपीन के इंजेक्शन (वयस्क के लिए 2.4 मि.ग्रा. 0.5-1.0 मि.ग्रा. बच्चों के लिए) की अनुशंसा की जाती है, 5-10 मिनट के अंतराल में दुहरावें जब तक कि एट्रोपीन का असर न दिखें शीघ्रता शीघ्रता अति आवश्यक इंजेक्शन 1-4 मि.ग्रा. 1 जब विष के लक्षण पुनः दिखाई दे तो मि.ग्रा. दोबारा दें। ( 15-16 मिनट अंतराल) अत्यधिक लार बहना अच्छा संकेत और एट्रोपीन की आवश्यकता है। हवा आने के रास्ते खुले रखें, चूसें, ऑक्सीजन प्रयोग करें, इंडोट्रैकियल टूयूब डालें । टैकियोटॉमी करें और आवश्यकतानुसार कृत्रिम सांस दें। |
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1 |
२ |
3 |
४ |
5 |
6 |
7 |
8 |
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3 |
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उच्च रूप से विषैला
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पीला |
श्रेणी 2 सामान्य रूप से खतरनाक
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चिकित्सीय सहायता कंटेनर, लेबल, लीफलेट के साथ पीड़ित को डॉक्टर /प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाएं। |
तीव्र-दस्त, आंख की पुतली स्थिर रहना, सांस लेने में कष्ट, फेफड़ा, फूलना, नीला पड़ना, मांसपेशियों के नियंत्रण में कमी, मूर्च्छा बेहोशी एवं हृदय का अवरुद्ध होना। |
यदि उल्टी न हो रही तो 5% सोडियम बाईकार्बोनेट घोल पिलाएं, चमड़ी में सम्पर्क के लिए साबुन और पानी से धोएं ( आँख नमक पानी से धोएं) सम्पर्क में आए स्थानों में धोते समय रबर के दस्ताने पहन लें। एट्रोपिन के अलावा 2-पीएएम (2- पाईरिडीन एल्डोक्जाएम मेथीओडाटाड दें। 1 ग्रा. एवं शिशुओं के लिए 0.25 ग्रा. इंट्राविनस धीमीगति में 5 मिनट की अवधि में और निर्देश के अनुसार समय-समय पर इसका दुहराव करें एक से अधिक इंजेक्शन की आवश्यकता हो सकती है। मोरफिन, थियोफायलिन एमीनोफायलीन बारबीचुरेट्स, फेनेथायाजीन न दें। पहले कृत्रिम सांस दें फिर एट्रोपिन दें। |
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कार्बामेट्स |
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4 |
कार्बाराइल |
उच्च रूप से विषैला
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पीला |
श्रेणी 2 सामान्य रूप से खतरनाक
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पुतलियों का संकुचन, लार निकलना, जोर से पसीना अवसाद, मांसपेशियों में तालमेल न होना मतली उल्टी, दस्त, पेडू में दर्द छाती में में कड़ापन |
एट्रोपीन इंजेक्शन 1 से मि.ग्रा. जब विष के लक्षण फिर दिखे तो 2 मि.ग्रा. पीर दें (15-60 मिनट अंतराल पर) अधिक लार निकलना अच्छा चिन्ह, एट्रोपीन की और आवश्यकता है। हवा आनेवाले मार्ग खुलें रखें, सांस फूंकें, ऑक्सीजन प्रयोग करें इंट्रोटैकियल टूयूब डालें ट्रैकियोटॉमी करें और आवश्यकतानुसार कृत्रिम सांस दें। यदि उल्टी न आती हो तो 5% सोडियम बाईकार्बोनेट पिला कर साफ करें, चमड़ी में सम्पर्क के लिए साबुन और पानी से धोएं ( आँख नमक पानी से धोएं) सम्पर्क में आए स्थानों में धोते समय रबर के दस्ताने पहन लें। ऑक्सीजन अगर जरूरत हो तो मॉरफीन दें। |
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फंगीसाइड्स |
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मेटालेक्सील |
सामान्य रूप से विषैला |
नीला |
श्रेणी 3 हल्का खतरनाक |
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सिरदर्द .तेज, धड़कन उल्टी, चेहरे का रंग उड़ा हुआ नाक, गला, आंख और चमड़ी में खुजली |
कोई विशिष्ट प्रतिकारक नहीं। चिकित्सा अनिवार्य रूप से लक्षण पर निर्भर है। |
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स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम सुधारित : 2/22/2020
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