पहाड़ी क्षेत्रों में कठिन भौगोलिक परिस्थितियों सीमित संसाधनों, खेतों के छोटे आकार तथा जटिल जलवायु के बावजूद आज भी कृषि एवं कृषि आधारित व्यवसाय ही किसानों की जीविका का मूल आधार है। इन परिस्थितियों के फलस्वरुप ही यहाँ के किसान मिलीजुली एकीकृत खेती करते हैं। सुधरी तकनीकों एवं आधुनिकतम कृषि व्यवहार से पहाड़ के किसानों की आमदनी को बढ़ाया जा सकता है। पर्वतीय क्षेत्रों की ठंडी जलवायु में मछली, लोगों के लिए उत्तम प्रोटीन आहार है। इसके अतिरिक्त मछली पालन जीविकापार्जन के लिए भी अत्यंत उपयोगी है। मिलीजुली खेती – बाड़ी में छोटे – छोटे आकर के तालाब किसानों की कृषि क्रियाओं में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। तालाबों में संचित जल, मत्स्य पालन के साथ – साथ बागवानी, सब्जी उत्पादन एवं पशुपालन के लिए भी उपयोगी है।
भौगोलिक स्वरुप एवं जलवायु के अनुसार हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों में त्रिस्तरीय मत्स्य पालन किया जा सकता है। समुद्रतल लगभग 1600 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले अत्यंत ठंडे क्षेत्र रेन्बो ट्राउट मछली पालन के लिए उपयुक्त हैं। मध्यम ऊंचाई (1000 – 1600 मीटर) वाले पहाड़ी क्षेत्र विदेशी कार्प मछलियों के पालन में सहयोगी हैं। इन तीन विशिष्ट क्षेत्रों के लिए पारिस्थितिक एवं संसाधन विशेष जलकृषि हेतु उपयुक्त एवं सुधरे तौर – तरीके इस प्रकार हैं
अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में शीतल, शुद्ध और ऑक्सीजनयुक्त बहता हुआ पानी उपलब्ध रहता है। यह पर्वत श्रृंखलाओं पर जमी बर्फ के पिघलने से आता है। यह क्षेत्र रेन्बो ट्राउट अधिक उत्पादन देने वाली तथा ऊँचे दाम पर बिकने वाली विदेशी मछली है। ढलान वाले कंटूर क्षेत्र जहाँ बाहुल्यता से शीतल जल उपलब्ध होता है, इस प्रजाति के पालन के लिए उपयुक्त हैं। जम्मू – कश्मीर राज्य में कश्मीर घाटी, अनन्तनाग एवं लेह – लद्दाख घाटी; हिमाचल प्रदेश में चम्बा, किन्नौर लाहुल स्पीति एवं कुल्लू घाटी, उत्तराखंड में चमोली उत्तरकाशी, देहरादून, चम्पावत एवं पिथौरागढ़ का क्षेत्र, सिक्किम राज्य में वेस्ट, नार्थ एवं ईस्ट सिक्किम का क्षेत्र तथा अरुणाचल प्रदेश में तवांग, दिरांग, टेंगा एवं चेला के कुछ के कुछ क्षेत्र ट्राउट पालन के लिए उपयुक्त हैं। ट्राउट पालन के लिए छोटे आकार (30 वर्ग मीटर) की लंबाई वाले (15 मीटर लंबाई, 2 मीटर चौड़ाई) पक्के तालाब (रेश –वे) की आवश्यकता होती है। पानी में 7 मि. ग्रा./लीटर से अधिक घुलित ऑक्सीजन तथा 6.5 – 8.0 पी एच मान जरूरी होता है। ट्राउट रेश – वे में 40 – 60 अंगुलिकाएं प्रति घन मीटर की दर से संचय करके 12 माह में 300 - 350 ग्राम आकार की मछलियों से लगभग 500 कि. ग्रा. प्रति रेश – वे उत्पादन किया जाता है। तथा 190 लीटर प्रति मिनट पानी का बहाव रखा जाता है। अच्छी प्रबंध व्यवस्था, 100 अंगुलिकाएं प्रति घन मीटर संचय दर, उत्तम आहार व्यवस्था तथा 300 लीटर प्रति मिनट पानी बहाव के साथ 700 – 1000 कि. ग्रा./मछलियों का रेश – वे में उत्पादन किया जा सकता है। रेन्बो ट्राउट की अधिक बढ़वार एवं अच्छे उत्पादन के लिए पानी का तापमान 13 – 180 सेल्सियस होना आवश्यक है। पानी की उपलब्धता के अनुसार ट्राउट फ़ार्म में एक रेश – वे या श्रेणीबद्ध कई रेश – वे का निर्माण किया जा सकता हैं। अनुकूल परिस्थितियां बनाये रखने के लिए रेश – वे का उपयुक्त आकार एवं स्वरुप आवश्यक है। रेश – वे का लंबाईयुक्त 30 वर्ग मीटर का आकार, पानी के इनलेट से आउटलेट डिजाई, अधिक ऑक्सीजन देने, अमोनिया का निष्कासन तथा पानी को साफ रखने में समय सहायक है। रेश – वे को 1 मि. ग्रा./लीटर पोटेशियम परमैंगनेट के घोल से धोकर 80 सें. मी, गहराई तक शुद्ध शीतल जल से भरते हैं। रेश – वे में 300 लीटर प्रति मिनट बहाव के साथ 2 – 5 ग्राम को 100 अंगुलिकाएं प्रति घन मीटर जल की दसर से (3000 अंगुलिकाएं/ प्रति रेश – वे) संचय करते हैं। समय – समय पर छोटे –बड़ी मछलियों की ग्रेडिंग करते रहते हैं, ताकि स्वयं भक्षण को रोका जा सके। ट्राउट मछली पूरी तरह से दिए गये आहार पर पाली जाती है। इसमें 35 – 40 प्रतिशत उत्तम कोटि की प्रोटीन तथा 10 – 14 प्रतिशत वसा का होना आवश्यक है। ट्राउट मछली का आहार, फिशमिल सोयाबीन मील, गेहूं का आटा स्टार्च, मछली का तेल, ईस्ट मिनरल – विटामिन मिलाकर तैयार किया जा सकता है। अंगुलिकाएं एवं ट्राउट आहार मत्स्य विभाग से प्राप्त किये जा सकते हैं।
लगभग 10 – 12 माह में 300 – 400 ग्राम के आकार की मछलियों को तालाब से निकालकर बेचा जा सकता है। निष्कासन के 1 – 2 दिन पहले आहार नहीं देते हैं। दूर बाजार में भेजने के लिए बर्फ के साथ पैकिंग की जा सकती है। प्रत्येक रेश – वे (30 वर्ग मीटर) से लगभग 1.25 लाख रूपये की शुद्ध आमदनी प्राप्त की जा सकती है। मूल्यवर्धित उत्पादों तथा ब्रांड नेम ‘हिमालयन ट्राउट’ से और अधिक आमदनी प्राप्त की जा सकती है। वर्तमान में देश का ट्राउट उत्पादन लगभग 842 टन है तथा औसतन सालाना वृद्धि दर लगभग 31 प्रतिशत आंकी गई है। कुल उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत उत्पादन हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू एवं कश्मीर राज्य से होता है। अन्य पर्वतीय राज्यों जैसे – उत्तरखंड, सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश में भी आधुनिकतम तकनीक का प्रसार करके रेन्बो – ट्राउट पालन की व्यव्यापक पहल की गई है, जो कि किसानों की आय वृद्धि में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भारतीय कार्प मछलियाँ (रोहू, कतला, म्रिगल) तथा विदेशी कार्प मछलियों (सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प, कॉमन कार्प) को लगभग 0.1 – 0.4 हैक्टर आकार के कच्चे तालाबों में वर्ष भर पाला जाता है। स्टंट फिश अधिक समय तक नर्सरी में रखी मछली के संचय से वर्ष में दो फसलें लेकर उत्पादन में लगभग दोगुनी वृद्धि की जा सकती है। इस कार्य में तालाब की तैयारी के उपरांत 50 – 80 ग्राम की बड़े आकर की अंगुलिकाएं (स्टंट फिश) 5000 – 6000/ हैक्टर की दर से संचित की जाती हैं तथा नियमित उनके वजन का 2 -3 प्रतिशत सम्पूरक आहार दिया जाता है। 6 माह की अवधि में लगभग 2.5 – 3 टन/हैक्टर मछली की फसल लेकर तालाब को पुन: तैयार करके अंगुलिकाओं का संचय हैं इस प्रकार वर्ष में दो फसलों के द्वारा कुल उत्पादन 5 – 6 टन/हैक्टर लिया जा सकता है। मछली के तालाब के साथ पशु, मुर्गी बत्तख या बागवानी करने से उत्पादन लागत में कमी तथा आमदनी में वृद्धि की जा सकती है। पर्वतीय राज्यों के मैदानी क्षेत्रों तथा कम ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में यह उपयोगी है।
ठंडी जलवायु के कारण इन क्षेत्रों में भारतीय कार्प मछलियों की बढ़वार नहीं होती है। अत: यहाँ पर विदशी कार्प जैसे – सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प तथा कॉमन कार्प का समन्वित पालन किया जाता है। परंपरागत ढंग से इस प्रकार मछली पालकर लगभग 34 कि. ग्रा/100 वर्ग मीटर उत्पादन किया जाता है। शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय, भीमताल द्वारा विकसित पॉलीथीन लगे (पॉलीटैक) तालाबों से लगभग 70 कि. ग्रा./100 वर्ग मीटर/वर्ष उत्पादन किया जा सकता है। तालाब में एकत्र जल का उपयोग मछली पालन के साथ – साथ सब्जी तथा बागवानी में सिंचाई हेतु भी किया जाता है। पॉलीथिन पानी के रिसाव को रोकता है तथा पानी के तापमान को 2 – 60 सेल्सियस तक बढ़ा देता है, जो कि मछलियों की बढ़वार में सहायक है। पानी के अधिक तापमान तथा हंगेरियन कॉमन कार्प के संचय से लगभग दोगुनी आमदनी प्राप्त की जा सकती है। नाइट्रोजनयुक्त तालाब का पानी सिंचाई के लिए उपयोगी है तथा सब्जी उत्पादन को बढ़ाने में सहायक है।उपलब्ध जल स्रोत से तालाब पुन: भर लिया जाता है। उपलब्ध हरी घास तथा फसल के पत्तों को ग्रासकार्प खा सकती है। उत्तराखंड राज्य में इसका सफल प्रदर्शन किया है तथा अन्य उपयुक्त क्षेत्रों में भी य तकनीक उपयोगी है।
सारणी 1. ट्राउट के लिए आहार
आकार |
प्रोटीन प्रतिदिन |
आहार दर वजन का प्रतिशत |
प्रतिदिन आहार देने की प्रतिदिन बारंबारता |
< 10 ग्राम |
40 प्रतिशत |
5 – 10 प्रतिशत |
7 – 8 |
< 50 ग्राम |
35 प्रतिशत |
5 – 6 प्रतिशत |
3 – 4 |
< 50 ग्राम |
35 प्रतिशत |
2- 3 प्रतिशत |
2 – 3 |
लेखन: अतुल कुमार सिंह और नित्यानंद पाण्डेय
अंतिम सुधारित : 2/21/2020
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