मल्टी-ग्रेड(बहु-कोटि) शिक्षण की स्थिति प्राथमिक विद्यालयों में बतायी जाती है, जहां एक ही समय में एक या दो शिक्षक दो या दो से अधिक ग्रेडों को संभालते हैं और ‘मल्टी-लेवल’ एक ही ग्रेड के बच्चों में सीखने की क्षमता के स्तरों में अंतर बताता है। सहयोग से यह पता चलता है कि शैक्षणिक उद्देश्यों में सफलता को सुनिश्चित करने के लिए न केवल एमजीटी/मल्टीलेवल स्थिति को सफलता पूर्वक संभाला जा सकता है बल्कि, इसे एक अधिमानित प्रयास के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। यद्यपि तत्पश्चात कई नवीनताएं दिखती हैं। नवीन प्रयासों के कुछ मुख्य पहलू (कुछ दोनों ढांचों में उभयनिष्ठ) हैं׃
ऐसे प्रयास जिनमें बेहतर शिक्षण/अवधारणा, तनावमुक्त शिक्षण शामिल हैं- अपनाने से छात्रों-अभिभावकों की संतुष्टि में वृद्धि, उच्च शिक्षकों के शामिल होने और अभियान की अर्थव्यवस्था में सुधार होने का परिणाम मिला है।
सदस्यों ने भारत के विभिन्न हिस्सों खासकर ग्रामीण क्षेत्र जहां MGT की स्थिति मजबूत है, से मिली अपनी सफल मध्यस्थताओं की कीमती जानकारियों और अनुभवों को बांटा।
इनमें से एक है ऋषि वैली मॉडल, जिसका विकास बाल-अनुकूल पठन-पाठन के प्रयास के इर्द-गिर्द हुआ है। आंध्रप्रदेश के एकल शिक्षक ग्रामीण प्राथमिक विद्यालय में जांचे-परखे और योग्य, शिक्षा के इस मॉडल का विकास दीर्घ काल वाले स्व-जीवित साहसिक कार्य के रूप में हुआ। इसकी अर्थव्यवस्था, शिक्षण विकास के मूल्य और सुदृढ़ समाजिक सहयोग, और स्व-जीवितता की शक्ति ने कई राज्यों के सरकारों का ध्यान आकृष्ट किया है, ताकि उन राज्यों में इसे दोहराया जा सके।
सदस्यों की प्रतिक्रियाओं से यह पता चलता है कि सरकारी व्यवस्था में चलाए जा रहे स्कूलों की प्रभावी प्रवृत्तियों के अंतर्गत विधियों और प्रक्रियाओं को ग्रेड आधारित पाठ्यक्रम के संदर्भ में MGT महत्ता की दृष्टि से जहां तक आवश्यक हो, पुनर्व्यवस्थित करने पर जोर देने की जरूरत है। एमजीटी-संबंधित सेवाकालीन प्रशिक्षण को मदद पहुंचाने वाला और शिक्षकों को नियमित शैक्षणिक आधार देने वाला बाल-अनुकूल शिक्षण, सरकारी व्यवस्था के एमजीटी प्रयास का प्रमाण रहा है। गुजरात और उड़ीसा के उदाहरण से इस प्रयास का हवाला दिया दिया गया׃ गुजरात के संदर्भ में एमजीटी स्थिति की प्रभावशाली ढंग से सामना करने की शिक्षकों की योग्यता को मूल प्रश्न और सेवाकालीन प्रशिक्षण की पर्याप्तता को गुणवत्ता के चिह्न के रूप में पाया गया। शिक्षकों को एमजीटी/बहुस्तरीय स्थिति द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों को प्रभावशाली और सफल तरीके से सामना करने के लिए, इनकी योग्यताओं को बढ़ाने वाले अन्य मूल तत्वों के रूप में सतत शैक्षणिक मार्गदर्शन मिलता हुआ दिखाई देता है। उड़ीसा में दोहरी कार्यनीतियों को आवश्यक समझा गया, अर्थात , (I) शिक्षा के सुधार के लिए पूर्वावश्यकता के रूप में विद्यालयों और शिक्षण-हालातों में सुधार और (ii) शिक्षकों की शैक्षणिक दक्षता को मजबूत बनाने के लिए सेवाकालीन व्यवस्थित प्रशिक्षण ।
अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों में भी प्रयासों की ऐसी ही विभिन्नताएं और नई सोच पाई गईं। ‘मौलिक शिक्षा’ का एक उदाहरण है׃ ‘अब और स्कूल नहीं’। यह एक ऐसी संकल्पना पर आधारित प्रयास है जिसकी कोशिश विद्यालयों, पाठ्यपुस्तकों, शिक्षकों, और, क्रमों(ग्रेड) को, शिक्षण केन्द्र, स्व-निर्देशक सामग्री, सहकर्मी, शिक्षक और सामाजिक सहयोग तथा शिक्षकों की प्रतिभागिता शिक्षा में सहायता की भूमिका द्वारा बदल देने की थी। ग्रामीण विद्यालयों में यह प्रयास कारगर सिद्ध हुआ। अन्य प्रयास, पाठ्यपुस्तकों के पुनर्व्यवस्थित करने, एमजीटी के संगत पाठन-प्रशिक्षण सामग्रियों और प्रक्रियाओं का खाका तैयार करने के अलावा, एमजीटी स्थितियों से निपटने के लिए शिक्षकों की क्षमता निर्माण पर जोर देता है। सरकारी व्यवस्था के अंतर्गत विभिन्न देशों जैसे जाम्बिया, पेरू, कोलंबिया, श्रीलंका इत्यादि में यह बहुत ही व्यापक रूप से प्रचलित है।
लेख से यह स्पष्ट होता है कि अनुभव की गई खामी और ग्रामीण भारत में एमजीटी की अति भारयुक्त स्थिति को एक नई विधि अपनाकर एक विरली खूबी में बदला जा सकता है, जैसा कि कई सफल प्रयोगों से भारत और अन्य देशों में इसे साबित किया गया है। शैक्षणिक ‘विकल्प’ के रूप एमजीटी का अपनाया जाना एक ‘वैकल्पिक शिक्षा’ की ओर इंगित करता है, जहां पाठ्यक्रम और शिक्षा के कदम आयु/ग्रेड मापदंड पर आधारित न होकर बच्चों की शैक्षणिक योग्यता पर आधारित हैं।
स्त्रोत: पोर्टल विषय सामग्री टीम
अंतिम सुधारित : 5/22/2023
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