परिचय
मात्स्यिकी और जल-कृषि, भारतवर्ष में खाद्य उत्पादन के एक प्रमुख क्षेत्र से मिलकर बने हैं जो खाद्य-टोकरी में एक बहुत बड़ा अंशदान देते हैं। यह जनसंख्या के मध्य न केवल पोषकता संबंधी सुरक्षा सुनिश्चित करती है बल्कि कृषि संबंधी निर्यातों में महत्वपूर्ण रूप से अंशदान भी करती है। और यह मात्स्यिकी के विभिन्न क्रिया-कलापों में संलग्न 14 मिलियन से भी अधिक व्यक्तियों को लाभप्रद रोजगार और आजीविका में सहारा प्रदान करती है।
देश में मात्स्यिकी और जल-कृषि में दोहन न की गई बड़ी संभावना का उपयोग करने के लिये और भारत सरकार के निर्णय के अनुसरण में, पशुपालन, डेयरी और मात्स्यिकी विभाग, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण में दिनांक 10 जुलाई, 2006 को एक पंजीकृत समिति के रूप में हैदराबाद में राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एन.एफ.डी.बी.) की स्थापना की गई थी। एन.एफ. डी.बी. की स्थापना का मुख्य उद्देश्य है- मत्स्य उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाना और मात्स्यिकी के क्षेत्र के सम्पूर्ण विकास के लिये बुनियादी सुविधाओं को मजबूत बनाना।
भारत का मत्स्य-उत्पादन (मीट्रिक मिलियन टन में)
वर्ष
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मत्स्य-उत्पादन (मीट्रिक मिलियन टन में)
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2011-12
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8.666
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2012-13
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9.04
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2013-14
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9.579
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2014-15
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10.26
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2015-16
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10.76
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2016-17
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11.41
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2017-18(अनुमान अनुसार)
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12.6
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*लगभग 6.3% की उदार वार्षिक वृद्धि की दर से
मछ्ली पालन
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प्रतिशत
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कृषि-मात्स्यिकी
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65
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मछली की पकड़ की मात्स्यिकी
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35
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बड़े परिवर्तन
1. पकड़ वाली मात्स्यिकी से कृषि वाली मात्स्यिकी
2. अनुभवजन्य कृषि से ज्ञान पर आधारित कृषि करना
3. जीवन-निर्वाह कृषि करने से व्यापारिक कृषि करने में परिवर्तन
जल-कृषि की वृद्धिः पिछले 30 वर्षों में 6-7% वर्ष
निर्यात की माला 1.05 मी.मि.ट. – वर्ष 2016-17
मूल्य रु. 37,871 करोड़ – वर्ष 2016-17
नीली क्रान्ति की दृष्टि
धारणीयता, जैव-सुरक्षा और पर्यावरणीय चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, मछुआरों और मत्स्य-कृषकों की आय की प्रास्थिति में मूल रूप से सुधार के साथ-साथ, देश की मात्स्यिकी की पूर्ण संभावना के एकीकृत विकास के लिये एक समर्थ बनाने वाले वातावरण का सृजन करना।
कार्यांवयन करने वाले अभिकरण
- केंद्रीय सरकार के संस्थान / अभिकरण, एन.एफ.डी.बी., आई.सी.ए.आर. के संस्थान इत्यादि
- राज्य-सरकारें और संघ-शासित क्षेत्र
- राज्य सरकार के अभिकरण, निगम, परिसंघ
- मछुआरा सहकारी समितियाँ
- व्यक्तिगत लाभार्थी / उद्यमी
15 मी.मि.ट. के मत्स्य-उत्पाद पर पहुँचने के लिये नीली क्रांति की रणनीतियाँ
तालाब
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- क्षेत्र विस्तार
- उत्पादकता
- 2.33 मी.ट./हे. से
- 3.90 मी.ट./हे.
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जलाशय
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- उत्पादन में वृद्धि
- पिंजड़े की कृषि
- 100 कि.ग्रा./हे. से
- 170 कि.ग्रा./हे.
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खारा पानी
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- बुनियादी ढाँचा
- बीज-उत्पादन
- 3.52 मी.ट./हे. से
- 6.45 मी.ट./हे.
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समुद्रतटीय जल
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- खुले समुद्र में पिंजड़े की कृषि
- समुद्री शैवाल
- मारीकल्चर
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दलदल
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- सामुदायिक सहभागिता
- उपयोगिता बढ़ाइये
- 220 कि.ग्रा./हे. से
- 1000 कि.ग्रा./हे.
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शीतल जल
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- संरक्षण
- रेनबो ट्राउट की धावनपथों में कृषि करना
- महसीर
- खेल-कूद वाली मछली मारना
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गहरा समुद्र
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- गहरे समुद्र के संसाधनों का दोहन
- साशिमी श्रेणी की टुना का निर्यात
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प्रजातियाँ
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- माइनर कार्प
- आलंकारिक मछलियाँ
- तिलापिया, पंगेशियस
- पी.इंडिकस, पी.मोनोडोन
- प्रजनन की मानक प्रौद्योगिकी
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एन.एफ.डी.बी. हेतु रणनीतियाँ
- प्रजातियों की विविधता
- प्रौद्योगिकी का अंगीकरण
- प्रचार-प्रसार
पिछले 4 वर्षों में (2014-15 से 2017-18 तक) विकास की रणनीतियाँ और उपलब्धियाँ
मीठे पानी की जल-कृषि
- कृषि की उन्नत पद्धतियाँ अपनाना
- बुनियादी ढाँचे का सृजन: ब्रूडस्टॉक के गुणन के केंद्र, जलीय संगरोध की सुविधाओं, हैचरियों, अंगुलिकाओं . के उत्पादन के लिये बीज-पालन का स्थान, भोजन की मिलें
- प्रजातियों का विविधीकरण
- पंगेशियस के बीज का उत्पादन और पालन
- जलाशयों में पिंजड़ों की कृषि में पंगेशियस
- पुन:-परिसंचरणीय जल-कृषि
- कृषि किये जाने वाले क्षेत्रों में जलीय जीव स्वास्थ्य एवं पर्यावरणीय प्रबंधन की प्रयोगशालाओं की स्थापना किया जाना
- जलाशयों का एकीकृत विकास
उपलब्धियाँ
(i) तालाब की जल-कृषि
- नये तालाबों/टैंकों का निर्माण किया गया -26751 हे.
- तालाबों एवं टैंकों का पुनरुद्धार-1494 हे.
- तालाबों एवं टैंकों का कायाकल्प-632 हे.
- मीठे पानी की जल-कृषि के लिये इनपुट की लागत 2656 हे.
- मछली की हैचरियों की स्थापना-374 नग
- खारी/नमकीन मिट्टियों में तालाबों का निर्माण-523 हे. और इनपुट की लागतें प्रदान की गईं-530 हे.
- मत्स्य-बीज पालन की इकाईयों का निर्माण-1498 हे. और इनपुट की लागते प्रदान की गईं-741 हे.
- भोजन के मिलों की स्थापना-100 नग
(ii) सघन प्रणालियाँ
- पुन:-परिसंचरणीय जल-कृषि की प्रणालियाँ-207 नग
- जलाशयों में 7091 पिंजड़ों की स्थापना में सहायता की
- मछुआरों को नाव एवं उपस्करों की आपूर्ति - 2868 इकाईयाँ
(iii) दलदल
- बीलों / दलदलों में मत्स्य-अंगुलिकाओं का भंडारण किया जाना
- कृषि पर आधारित मात्स्यिकी का प्रोत्साहन
- प्राकृतिक पारिस्थितिकी-तंत्रों के स्वास्थ्य की वहाली किया जाना
उपलब्धियाँ
- 2538 हे. के क्षेत्रफल में बीलों / दलदलों में अंगुलिकाएं भंडारित की
- 395 हे. वाले रुके हुए पानी वाले तालाबों में तालाबों का निर्माण कराया और 533 हे. में इनपुट की लागते प्रदान की।
खारे पानी की जल-कृषि
- नये तालाबों/टैंकों का निर्माण-2306 हे.
- झींगा मछली/श्रिंप की हैचरियों की स्थापना की-22 नग
- नर्सरियों की स्थापना की (71 नग)
शीतल जल की मात्स्यिकी
- धावनपथों में रेनबो ट्राउट की जल-कृषि का व्यवसायीकरण
- उत्पादकता की वृद्धि के लिये रेनबो ट्राउट के गुणवत्तापरक जर्मप्लाज्म का आयात
उपलब्धियाँ
1330 इकाईयों में शीतल जल की जल-कृषि के लिये धावनपथों हेतु सहायता की
आलंकारिक मात्स्यिकी
- गुणवत्तापरक ब्रूड के स्टॉक का विकास, देशी आलंकारिक मत्स्य की प्रजातियों का बंधन में प्रजनन पर जोर
- बंधन में प्रजनन को प्रोत्साहित करना तथा
- समुद्री आलंकारिक प्रजातियों का उत्पादन
उपलब्धियाँ
- आलंकारिक मात्स्यिकी की इकाईयों की स्थापना करने हेतु सहायता की (659 नग)
समुद्री मात्स्यिकी
- परम्परागत नाव का मोटरीकरण
- समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा
- एच.एस.डी. तेल पर मछुआरों के विकास हेतु छूट
- उन्नत डिजायन की मध्यम नाव का प्रारम्भ किया जाना
- जलयान के अनुश्रवण करने की प्रणाली की स्थापना और परिचालन
- ईंधन-क्षम और पर्यावरण के अनुकूल मछली मारने के प्रयोगों को प्रोत्साहित किया जाना
- परम्परागत/कारीगर मछुआरों को सहायता
- मछली मारने के विद्यमान जलयानों का स्तरोन्नयन
उपलब्धियाँ
- परम्परागत नाव का मोटरीकरण (7441 नग)
- समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा (12262 किटें)
- मध्यम आकार की नाव का प्रारम्भ किया जाना (7 नग)
- एफ.आर.पी. नावों (544 नगों) की प्राप्ति के लिये परम्परागत/कारीगर मछुआरों की सहायता की
मारीकल्चर
- मारीकल्चर को प्रोत्साहन: खुले समुद्र में पिंजड़े की कृषि के लिये कोबिया, पोम्पानो और सी-बॉस जैसी उम्मीदवार प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित किया जाना
- बीज-उत्पादन एवं खुले समुद्र की मारीकल्चर हेतु भोजन पर जोर
- द्विकपाटी, मोती और समुद्री शैवालों की कृषि के लिये विशेष रूप से महिलाओं के समूहों को शामिल किया जाना
उपलब्धियाँ
- 705 पिंजड़ों में खुले समुद्र में पिंजड़ों की कृषि
- 10110 तरापों में समुद्री शैवालों की कृषि
- 4070 तरापों में द्विकपाटी की कृषि
गहरे समुद्र में मछली मारना
- गहरे समुद्र में टुना के पकड़ने एवं प्रबंध करने के लिये मछुआरों को जहाज पर प्रशिक्षण
- भारत से सुषिमी श्रेणी की टुना के निर्यात पर जोर
- गहरे समुद्र में मछली मारने वाले जलयानों की प्राप्ति के लिये वित्तीय सहायता
उपलब्धियाँ
परम्परागत मछुआरों द्वारा गहरे समुद्र में मछली मारने के 675 जलयानों की प्राप्ति के लिये सहायता प्रदान की गई।
बुनियादी ढाँचा और फसलोत्तर प्रसंस्करण करना, मूल्य-वर्धन एवं विपणन करना
मछली मारने वाले बंदरगाहों और मछली के उतराई वाले केंद्रों की स्थापना
शीत-श्रृंखला की सुविधा का सृजन
मछली के आधुनिक स्वच्छ बाजारों का सृजन
रोजगार हेतु सूक्ष्म और छोटे बाजार के बुनियादी ढाँचों हेतु सहायता
उपलब्धियाँ
- मछ्ली मारने वाले बन्दरगाहों एवं मछ्ली के उतराई वाले 20 केन्द्रों की स्थापना हेतु सहायता दी गयी
- वर्फ के संयंत्रों -85 नग, शीत-भंडार -7 नग, वर्फ के संयंत्र-सह-शीत-भंडारों -104 नग का निर्माण
- वर्फ के विद्यमान संयंत्रों -124 नग और विद्यमान शीत भंडारों -25 नग का आधुनिकीकरण
- कुसंवाहक टूक -165 नग
- प्रशीतित टूक -4 नग
- वर्फ की पेटियों सहित ऑटोरिक्शा -446 नग
- मछलियों के थोक/फुटकर, बाजारों की स्थापना -25 नग
- मछली की फुटकर दुकानें -767 नग
- मछली की सचल दुकानें (चबूतरे) - 5997 नग
- सौर-ऊर्जा की प्रणाली -88 नग
मछुआरों का कल्याण
- मछुआरों हेतु आवास, पीने का पानी और सामुदायिक विशाल कक्ष जैसी मूलभूत सुविधाओं का सृजन
- मछली पकड़ने के कार्य में सक्रिय रूप से संलग्न मछुआरों के लिये बीमा-आच्छादन प्रदान किया जाना
- मछली मारने के महत्वहीन मौसम की अवधि में मछुआरों को सहायता प्रदान करना
उपलब्धियाँ
- मछुआरों के आवास अनुमोदित किये गये -12430 नग
- मछुआरों का वार्षिक आधार पर बीमा किया गया -46.80 लाख
- बचत-सह-राहत के अंतर्गत वार्षिक आधार पर मछुआरों को शामिल किया गया -2.43 लाख
प्रशिक्षण, कौशल विकास एवं क्षमता निर्माण
के.वी.केओं., आई.सी.ए.आर. के संस्थानों, ए.टी. एम.एओं., ए.टी.ए.आर.आईज., मात्स्यिकी के संस्थानों, राज्य/संघ-शासित क्षेत्र के स्वामित्व वाले संगठनों, राज्य के कृषि/पशु-चिकित्सा/मात्स्यिकी के विश्वविद्यालयों, मात्स्यिकी के परिसंघों, निगमों इत्यादि जैसे राज्य सरकारों, संघ-शासित क्षेत्रों, केंद्रीय सरकार के संगठनों/संस्थानों के माध्यम से मत्स्य- कृषकों एवं मछुआरों तथा अन्य शेयरहोल्डरों के लिये प्रशिक्षण, कौशल विकास एवं क्षमता-निर्माण।
उपलब्धियाँ
- पिछले चार वर्षों (2014-15 से 2017-18 तक), में रु.12.55 करोड़ के बजट के व्यय से विभिन्न राज्यों/ संघ-शासित क्षेत्रों में लघु अवधि और लम्बी अवधि के प्रशिक्षण के कार्यक्रमों के माध्यम से मात्स्यिकी के विभिन्न संस्थानों द्वारा मात्स्यिकी के विभिन्न पहलुओं में 59131 लाभार्थियों को प्रशिक्षित किया गया था।
मात्स्यिकी की जल-कृषि और बुनियादी ढाँचे के विकास की निधि
सरकार ने 2018-19 के बजट में मात्स्यिकी और जल-कृषि के बुनियादी ढाँचे के विकास की रु.8000 करोड़ की एक पृथक् निधि के सृजन की घोषणा की है।
नीली क्रान्ति योजना के अंतर्गत सहायता की वाले पद्धति
श्रेणी
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सरकारी सहायता
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लाभार्थी का अंशदान
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I. लाभार्थी की ओर उन्मुख योजनाएं
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सामान्य वर्ग
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40%
(24% केंद्रीय + 16% राज्य)
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60%
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कमजोर वर्ग
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60%
(36% केंद्रीय + 24% राज्य)
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40%
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II. राज्य की ओर उन्मुख योजनाएं
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सामान्य राज्य
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50% केंद्रीय + 50% राज्य
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पहाड़ी/उ.पू. के राज्य
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80% केंद्रीय + 20% राज्य
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संघ-शासित क्षेत्र
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100% केंद्रीय
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नीली-क्रान्ति योजना के अंतर्गत वित्तीय सुविधा का लाभ उठाने के लिये, शेयरहोल्डर इनसे सम्पर्क कर सकते हैं:
1. जिला स्तर पर - मात्स्यिकी का सहायक निदेशक
2. राज्य स्तर पर - मात्स्यिकी का निदेशक / आयुक्त
3. राष्ट्रीय स्तर पर - मुख्य कार्यपालक, एन.एफ.डी.बी., हैदराबाद
स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय