बहरासाठी खताची पहिली मात्रा
अ.नं. |
डाळींब पिकाचे बहर |
सेंद्रिय खते |
रासायनिक खते |
||
|
|
कंपोस्ट/शेणखत/लेंडी खत |
कोंबडी खत |
निंबोळी खत |
सिंगल सुपरफॅस्पेट |
१ |
पहिला बहर |
१५ किलो |
१० किलो |
अर्धा किलो |
अर्धा किलो |
२ |
दुसरा बहर |
२० किलो |
१५ किलो |
एक किलो |
७५० ग्रॅम |
३ |
तिसरा बहर |
२५ किलो |
२० किलो |
दीड किलो |
एक किलो |
अ.नं. |
पिकाची अवस्था |
पहीला बहर |
दुसरा बहर |
तिसरा बहर |
||||||
|
|
नत्र ग्रॅम |
स्फुरद ग्रॅम |
पालाश ग्रॅम |
नत्र ग्रॅम |
स्फुरद ग्रॅम |
पालाश ग्रॅम |
नत्र ग्रॅम |
स्फुरद ग्रॅम |
पालाश ग्रॅम |
१ |
पहिले पाणी देण्याआधी |
५० |
१५० |
२५ |
७५ |
२०० |
५० |
१०० |
२५० |
५० |
२ |
फळधारणा अवस्था |
७५ |
१०० |
२५ |
१२५ |
१५० |
५० |
१५० |
२०० |
७५ |
३ |
लिंबुच्या आकाराती फळे |
१०० |
१५० |
-- |
१५० |
२०० |
-- |
२०० |
२५० |
-- |
४ |
पेरूच्या आकाराची फळे |
५० |
२०० |
५० |
१०० |
२५० |
१०० |
१५० |
३०० |
१५० |
५ |
रंग येण्याची अवस्था |
७५ |
५० |
७५ |
१५० |
१०० |
१५० |
२०० |
१५० |
२०० |
६ |
गोडी व वजनवाढीचा काळ |
७५ |
-- |
१२५ |
१५० |
-- |
२०० |
२०० |
-- |
२५० |
डाळींब पीकवाढीच्या प्रत्येक अवस्थेमध्ये मुख्य अन्नद्रव्य, सुक्ष्म अन्नद्रव्य यांचा जसा महत्वपूर्ण वाटा असतो तेवढाच संजीवकांचाही असतो. डाळींब पिकासाठी संजीवकांचा वापर हा फवारणीच्या माध्यमातून केला जातो. पानांच्या माध्यमातून संजीवके पिकात शोषली जाऊन त्यांचा परिणाम लवकर मिळू शकतो. संजिवके निर्माण करण्याची क्षमता निसर्गत: पिकात असते, त्यासाठी जमिनीची उपजक्षमता परिणामकारक असणे आवक्ष्यक असते. झाडांमध्ये संजीवके ही जमिनीचा सामू, जिवाणूंची संख्या, सेंद्रिय कर्ब व नत्राचे प्रमाण यांच्यामुळे निर्माण होण्यास मदत होते.
संजीवके (Harmons) |
सक्रिय घटक |
फवारणीचा कालावधी |
प्रमाण |
पिकाची अवस्था |
वाढ रोधक |
इथेफॅन |
झाडास ताण बसण्यास चालना देण्यासाठी |
१०० लि. पाण्यासाठी ५० ते १०० मि.लि. |
ताणाची अवस्था |
आक्झिन्स |
अल्फा नॅप्थील अँसेटिक असिड |
पाणी लावल्यानंतर १ ते दीड महिन्याने |
१०० लि. पाण्यासाठी १० ते २५ मि.लि. |
फुलोरा अवस्था |
जिबेरॅलिन्स |
प्रोजीब (GA) |
पाणी लावल्यानंतर २ ते अडीच महिन्यांनी |
१०० लि. पाण्यासाठी अर्धा ते चार ग्रॅम |
निंबू आकाराची अवस्था |
सायटोकायनिन्स |
6-BA |
पाणीलावल्यानंतर ३ ते साडेचार महीन्यांनी |
१०० लि. पाण्यासाठी १०० मि.लि. |
पेरू आकाराची अवस्था |
वाढनियंत्रण |
क्लोरोमेक्वाट क्लोराईटड |
पाणी लावल्यानंतर ५ ते ६ महिन्यांनी |
१०० लि. पाण्यासाठी १५० मि.लि. |
पक्वतेची अवस्था |
कालावधी |
संजीवक/अन्नद्रव्ये |
फवारणीचा हेतू |
डाळींबाची फळे लिंबाएवढी असताना पालवी फुटल्यास |
वाढनियंत्रण (सीसीसी) |
झाडाची फाजील वाढ रोखण्यासाठी |
पहिला फवारणीनंतर ७ ते १० दिवसांनी |
मुख्य अन्नद्रव्य – 00:52:34 |
पालवी परिपक्व होण्यासाठी |
दुस-या फवारणीनंतर ७ ते १० दिवसांनी |
सूक्ष्म अन्नद्रव्य + अमिनो अँसिड |
पालवीची कार्यक्षमता वाढविण्यासाठी |
डाळींब पिकाला योग्य नियाजन केल्यास वर्षभरात केव्हाही बहर धरतो, म्हणुन त्याला सदाबहार पीक म्हटले जाते. तरीही मुख्यतः तीन बहारात डाळींबाचे नियोजन करतो येते. १) मृग बहर, २) हस्त बहर, ३) आंबे बहर.
पानगळीनंतर दुसरा महत्वाचा टप्पा म्हणजे झाडांची छाटणी होय. छाटणीवर डाळींबाचा बहर अवलंबून असतो. झाडाची कोणती काडी फळ देणारी आहे, हे अनुभवाअंती आपण ओळखू शकतो. झाडाची छाटणीच केली नाही तर जाड काडीवर आपण फळे घेऊ शकत नाही. अशा बिगर छाटणीच्या झाडांवर काडीच्या टोकाकडे फुले लागतात, त्यामुळे फळांना अपेक्षित फुगवण मिळू शकत नाही.
डाळींब झाडाच्या आतील भागात म्हणजे पोटात फळे येण्यासाठी केलेली छाटणी म्हणजे पोट छाटणी. या छाटणीत झाडाच्या आतील भागात फळ देणा-या काड्या ठेवण्यात येतात, त्यामुळे फळ सावलीत राहतात.
स्त्रोत :अॅग्रीप्लाझा
अंतिम सुधारित : 6/9/2020
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